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________________ 56 अनुसन्धान-३८ (२) उ. चरित्रनन्दी की गुरुपरम्परा एवं रचनाएं अनुसन्धान के अंक ३५, सन् २००६ में पृष्ठ ३१ से ४८ तक महोपाध्याय चारित्रनन्दी विरचित चतुर्दश पूर्व पूजा प्रकाशित हुई है। इसके सम्पादक हैं आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म. । दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण पूजा का सम्पादन कर आचार्यश्री ने साहित्यिक जगत् पर उपकार किया है। पूजा के पूर्व में कवि की गुरु परम्परा देते हुए सम्पादक ने लिखा है :- 'खरतरगच्छना जिनराजसूरि, तेमना पाठक रामविजय, तेमनी परम्परा क्रमशः सुखहर्ष (?)-पदमहर्ष-कनकहर्ष-महिमहर्ष-चित्रकुमार-निधिउदय (के उदयनिधि ?)-चारित्रनन्दी आम पंक्तिओ परथी उकले छे. आमां क्षति होय तो सुधारी शकाय ! संवत १८९५ मां आ पूजा कविए रची छे ते तेमणे ज नोध्यु छे.' इस वाक्यावली में प्रयुक्त आमां क्षति होय तो सुधारी शकाय ! शब्दों ने ही मुझे प्रेरित किया है । . खरतरगच्छ के गणनायक जिनसिंहसूरि के पट्टधर जिनराजसूरि हुए। जिनराजसूरि की ही शिष्यपरम्परा में उपाध्याय निधिउदय हुए । सम्भव है इनका बाल्यावस्था का नाम नवनिधि हो । इन्हीं के शिष्य उपाध्याय चारित्रनन्दी हुए जो चुन्नीजी महाराज के नाम से प्रसिद्ध थे । चारित्रनन्दी जैन न्यायदर्शन, काव्य, व्याकरण और पूजा साहित्य के उद्भट विद्वान् थे । उनके समय में काशी में जैन विद्वानों में इनका अग्रगण्य स्थान था । इनका साहित्य सृजन काल १८९० से लेकर १९१५ तक है । खरतरगच्छ साहित्य कोश के अनुसार चारित्रनन्दी की निम्न रचनाएं प्राप्त होती हैं :१. स्याद्वादपुष्पकलिकाप्रकाश स्वोपज्ञ टीकासह, न्यायदर्शन, संस्कृत, १९१४, अप्रकाशित, हस्त. सिद्धक्षेत्र साहित्यमन्दिर, पालीताणा, जिनयशसूरिज्ञान भं., जोधपुर प्रदेशी चरित्र, भाषा-संस्कृत, सर्ग ९, रचना संवत् १९१३, स्थान स्तम्भतीर्थ । अप्रकाशित, श्री पुण्यविजयजी संग्रह, एल.डी. इन्स्टीट्यूट, २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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