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जान्युआरी-2007
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प्रभाव है, बाद की रचनाओं में गुजराती का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । ये अपने विषय के निष्णात विद्वान् थे । भाषा कवियों में समयसुन्दरोपाध्याय के बाद इनको स्थान दिया जा सकता है।
हमें जो दीक्षा नन्दी सूची प्राप्त हुई है वह विक्रम संवत् १७०७ से है । जिनहर्षगणि की दीक्षा इसके पूर्व ही हो चुकी थी इसलिए प्राप्त दीक्षा नन्दी सूची में इसका उल्लेख नहीं है । प्रश्न उपस्थित होता है कि शान्तिहर्ष और जिनहर्ष गुरु शिष्यों की हर्षनन्दी कैसे स्थापित हुई ? सम्भावना है कि शान्तिहर्ष और जिनहर्ष पूर्व में पिता-पुत्र रहें हों, दीक्षा एक साथ हुई हो अथवा पुत्र की दीक्षा कुछ समय के भीतर ही हुई हो तो दोनों की हर्षनन्दी हो सकती है ।
इनकी अनेकों कृतियाँ प्राप्त होती है । रास साहित्य पर तो इनका एकाधिकार था । कुमारपाल रास (रचना संवत् १७४२) यह रास आनन्द काव्य महोदधि में प्रकाशित हो चुका है। इनकी रास संज्ञक रचनाएँ ७० के लगभग हैं । स्फुट रचनाएँ लगभग ४०० हैं । स्फुट रचनाओं का संग्रह भी अगरचन्दजी नाहटा द्वारा सम्पादित जिनहर्ष ग्रन्थावली में प्राप्त है । इसका प्रकाशन विक्रम संवत् २०१८ में सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर से हआ था । इनकी समस्त कृतियों के नाम की जानकारी के लिये देखें खरतरगच्छ साहित्य कोश । यह दोधक बावनी जिनहर्ष ग्रन्थावली में दूहा बावनी के नाम से पृष्ठ ९४ से ९९ तक प्रकाशित है । दोधक संस्कृत का रूप है जब कि दोहा भाषा का रूप है।
__ अतः यह कहा जा सकता है कि दोधक बावनी के कर्ता जसराज खरतरगच्छीय क्षेमकीर्ति परम्परा के उ. शान्तिहर्षगणि के शिष्य थे, और इनकी शिष्य परम्परा कुछ वर्षों पूर्व ही निःशेष हुई है । भविष्य में सम्पादिका संशोधन करने का कष्ट करेंगी ।
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