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जान्युआरी-2007
सरसति लिखइ संदेसडां, तुम्ह मिलवा अम्ह मनि एवडां, लिखतां पार न (पा)मीइ ए ॥ जु हु तमाहरइ पाखडी, तुम्ह दरिशन जोअत एणी आंखडी, ए आंखडी सफल करत हु माहरी ए ॥३८॥ हिवइ दि दरिशन जिन ताहरूं, यम गमि रहइ मन माहरु, मन माहरु चरण तुम्हारे थिर रहियु ए । बीय चंदा तुम्हे सुणयु ए, वंदन माहरी कहियु ए, कहियु ए सेवकनइ हिवइ तारयु ए ॥३९।।
(कलश) ईन्दु-षड्-रस-लेशी कही, ए संवछर संख्या कही संख्या कही फागुण सुदि एकादशी ए । ए तवन कीउ हर्षि करी, श्री गुरु चरण हीइ धरी, मनि धरी भगतिराग श्रीमधिर तणुए ॥४०॥ तपगछनायक सुखदायक, श्री विजयदानसूरीश्वर, उवझाय मुनिवर हर्षसागर, तासु गच्छि दिनकरु । तस सीस कहइ, जिनवदन ताहरु कमलसागर सोहइ ए तुम्ह चरणि मुझ मनि, अतिहि लीणु युं भमर मालती मोहइ ए ॥४१॥ इति चोत्रीश अतिशयस्तवनं संपूर्ण ।।
॥ समाप्त ॥
C/0. किरीट ग्राफिक्स रतनपोळ, अमदावाद-१
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