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________________ अनुसन्धान-३८ छइ रति बारइ मास, इंद्री पंच विलास, मनगमता हिवइ ए, अतिशय चुतीसमइ ए ॥३१॥ कहिया अतिशय चुतीस, पुहती मनह जगीस, सुणता मन रुलीए, धिन देखइ. ते वली ए ॥ गाम-नगर ते देश, जिहां स्वामी करइ निवेश, तुम्ह निरयय खिण खिणु ए, धिन्न जीवी तेह तणु ए ॥३२॥ ___ ढाल - ५ भरथ उलंभानी धिन नर-नारी - देवता, अहिनि (शि) तुम्ह पाइ सेवता, मनगमता फल पामइ तुम्ह सेवता ए ॥ मुझ मन अलजु अति घणुं, जोवा दरिशन तुम्ह तणु । अम्ह तणु संदेशु अवधारयुं ए ॥३३॥ मत पाखंड जगमाहि घणा, ते वचन न मानइ तुम्ह तणा । तुम्ह तणा शासनमांहि ते नहीइ ए ॥ सूत्र अरथ सूधां कहइ, ते उपरि मुझ मुनि रहइ, मन रहइ आज लगइ गुरु जबूधिका(?) ए ॥३४॥ इसी आण तुम्हारी वालही, ते सहि गुरुवयणे मई ग्रही । मइ ग्रही भवि, भवि आण तुम्हारडी ए हुं कुगुरु कुदेवि भोलविउ, करमइ इणी परि रोलविउ । रोलविउ तुझ विण स्वामी चिहु गतिइ ए ॥३५॥ दयासागर जिन ! तुम्ह कहीइ, सेवक उपरि हित वहीइ, तुम्ह कहीइ दि सवक (सेवक) शरीखी सूखडी ए । हिवई सेवक हीइं संभारयु, मुगति जाता वचि रयु, तारयु तारयु षेवरासु मनि धरु ए ॥३६।। जिन ! आण तुम्हारी सिर वहुं, तुझ जामलि हुं कुण कहुं, हुं कहुं त्रिभूवननु तुं राजीउ ए । गगन कागल कोइ मनि धरइ, ते षा(षी)र समु खडीउ करइ। ते करइ मेरुगिरि सरीसी लेखणी ए ॥३७।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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