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________________ जान्युआरी-2007 शासन सानिधकारि हो व्रतधारी यक्ष मनुखेश्वर इत्यादिक गुणधामी हो तम वामी जिन इग्यारमो ॥ दूहा ॥ गृहस्थावास भगवंत तणो त्रिस द्वि लाख ते वर्ष श्रीवत्सादेवी संघ रखवाल । विशेष कहे प्रभूजी दयाल ||३०|| चंद० ॥ सर्वगाथा ७९ ॥ लाख एकवीस केवल पणें बइं मास उणें उत्कर्ष ॥१॥ वर्ष लाख चोरासि आउखुं पूर्ण थये जिनराज । अणसण करे मन उजमें शिव वधू वरवा काज ॥२॥ श्रावण वदि तृतीया दिनें श्री श्रेयांश जिनवीर । एक सहस साधु सहित मास भक्त वड वीर ॥३॥ समेत शिखर नग्ग उपरि काउसग्ग मुद्राइं देव । शुक्लध्याने मोक्षे गया निर्वाणोत्सव सूर करे हेव ॥४॥ जिन प्रतिमा नित पूजतां सिझें वांछित काम । इंम जाणि केइ भवि जना बिंब भरावें तुम नाम ॥५॥ गुर्जरदेशे पत्तन नयर तिहां वणिक वसे ओसवाल । बुहड साखा दीपति गोठि गोत्र रसाल ॥६॥ सोनी ठाकरसी तस प्रिया नगाई सूत रायमल्ल । बिंब भरावें अभिनवुं भावना भावे भल्ल ॥७॥ Jain Education International 43 ढाल आरा माहिं ओरडी ललना तिहां किण हो बाजोठ ढलाव हरणी जव चरें ललना ए देशी विचरंता महिमंडले ललना, पउधार्या हो पीराण पटण मझारि, करें भवि वंदना ललना । सोनी रायमल्ल नेहथी ललना, निजधर तेडी हो तपगछ गणधार, पूजें पद अरिवृंदना ललना ॥१॥ संवत सोल अडसठि ललना, वैशाख वद हो छठ गुरुवार, क० । - ४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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