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________________ अनुसन्धान-३८ वैमानिक सूर मनुष्य ज हो वली मणु स्त्री ईशांने बेंसीने सफल करें मणु भव ॥२२॥ चंद० चार निकायनी देवी हो जिन सेवी अने वली साधवी ए उभी सूणे परषदा पंच । नर अनें नर ललना हो वली चार निकायना देवता सातमें साधु दूख न हे रंच ? ||२३|| चंद० इत्यादिक सात पर्षद हो रत्नगढे बेसी सांभले ए आवश्यक वृत्ति अधिकार । हवें आवश्यक चूर्णे हो मन पूर्णे भविआं । सांभलो अज्जा-विमाणदेवी उदार ॥२४॥ चंद० ए बें परषद उभी हो नित सांभलें प्रभुनी देशना शेष गणधरादि पर्षदा दश । बेठी सांभलें वाणी हो हीत आणी प्राणी चित्तमें न हे वयर में भूख तरस ॥२५॥ चंद० वाजिंत्र कोडाकोडि हो गयणमें अणवायां वाजें दानशीलादि ये उपदेश । कई समकित पामी हो शिरनामी प्रभू वांदी वले बारे परषदा जिनने आदेश ॥२६|| चंद० चोत्रीस अतिशय शोभित हो जिन अढार दोष रहितपणे पांत्रीस वाणी गुणसार । अष्ट महाप्रातिहारिज हो विराजित जाणे दीनमणी सूणो गणधर परिवार ॥२७॥ चंद० प्रभुने छौतेर ७६ गणधर हो कौस्तुभनामा आदि करी चौरासी सहस साधु परिवार । धारणी नामा साधवी हो एक लाखने त्रिण सहस कही तृपूष्ट नामा वासुदेव नृप सार ॥२८॥ चंद० श्रावक संख्या बे लाख ने हो उगण्यासी सहस ते भण्या श्राविसंख्या सूणो धरी नेह । चार लाख ने उपरि हो अडतालीस सहस इम कही छौंतर ७६ गछ संख्या एह ॥२९॥ चंद० Jain Education International . For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520538
Book TitleAnusandhan 2007 01 SrNo 38
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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