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अनुसन्धान ३५
ना इण्डियन एण्टिक्विटी एक्ट हेठळ, पुरातन तमाम प्रकारनी सामग्रीनी नोंधणी सरकारी कार्यालयोमा करावी देवामां आवी ज छे; मूल्यवान हस्तप्रतोनो पण तेमां समावेश थयो ज छे; तो आ नवो कार्यक्रम शा माटे ? बीजो सवाल ए पण हतो के - भारतना विविध प्रान्तोमांथी हजारो-लाखो प्रतो देश-विदेशमां वेचाई गई - विगत थोडां वर्षोमां, अने हजीये जेमनो आवी चीजोनो धंधो छे तेओ तो आवी सामग्री सम्पादन करीने वेचतां ज होय छे, बल्के हमेशां वेचतां ज - चोरतां ज रहेशे; तेमने रोकवा माटे भाग्ये ज कोई यन्त्रणा के प्रयत्न छे; तकलीफ तो जेओ सेंकडो वर्षोथी आ सामग्री परम्परागत साचवे छे तेमने ज पडशे. ढूंकमां, सरकारी यन्त्रणा तथा कार्यक्रममा भाग्ये ज कोई विश्वास मूकी शके तेम छे. आजे विनंति करे, छतां जिल्ला कलेक्टरना तुमाररूपे ते विनंति होय; तो काले 'तमे बराबर संभाळी शको तेम नथी' एम कहीने सरकारी कचेरीओ आ सामग्री पडावी लेशे नहि तेनी शी खातरी ? - आवी दहेशत व्यापक छे, जेनो कोई जवाब मळे तेम नथी. बीजुं, एकवार सूचिनोंध आपी देवाई, पछी तेमां कोई ऊधई आदि कारणे २-४ प्रतोमां फेरफार थाय, तो पेलुं जड तन्त्र-जेना तान्त्रिको वारंवार बदलाया करवाना ते- केटली हेरानगति करे? - आवी अनुभवजन्य दहेशतोनो कोई जवाब मळे पण नहि.
आथी, शकेश्वरमां ता. १९-२-०६ना रोज एकत्र मळेला केटलाक जवाबदार तथा विद्वान जैन आचार्यादि मुनिराजोए, एक प्रस्ताव द्वारा, आ कार्यक्रममां भाग लेवानी, जैन संघो वगेरेने मनाई फरमावी छे.
आ मुद्दो धार्मिक लागणीनो नहि, पण परम्परागत सांस्कृतिक धननी रक्षानो छे, अने आना हजी पण घणाबधां पासां छे, ते लक्ष्यमां राखीने ज आ बाबत विचारवा भलामण छे.
सरकार ज रक्षा करे, अथवा सरकार करे ते ज रक्षा होय, तोज रक्षा थाय, एवी भ्रमणामां फसावा जेवू नथी ज. हजारो के सेंकडो वर्षोथी बधुं सचवायुं छे ते बाबत पण नजरंदाज करवी न जोईए.
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