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फेब्रुआरी - 2006
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३. मुखपृष्ठ-चित्र विषे . सत्तरमा शतकनी एक कलात्मक धातुप्रतिमानुं आ चित्र छे. जैन तीर्थंकरनी पंचतीर्थी-प्रकारनी प्रतिमानुं आ परिकर छे, तेमां अलगथी मूकवानी जिनप्रतिमा अत्यारे अलभ्य छे तेम जाण्युं छे. कला-धातुकलानी दृष्टिए बहु सरस नमूनो जणातां ते अत्रे आपेल छे. तेना पर वंचातो लेख आ प्रमाणे
छे :
अलाइ ४५ संवत १६५६ वर्षे वैशाख शुदि ७ बुधे वृद्धशाखायां मोढज्ञातीय स्तम्भतीर्थवास्तव्य ठ. कीका भार्या वंनाइनाम्न्या सुत ठ. काला, लालजी, हीरजी प्रमुखकुटुम्बयुतया स्वश्रेयसे स्वयं प्रतिष्ठा कारापणपूर्वकं श्रीकुन्थुनाथबिम्बं कारितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छे श्रीविजयदानसूरि पट्टधारिपातसाहि श्रीअकब्बर प्रदत्त जगद्गुरुबिरुदधारक-पातसाहि अकबरप्रतिबोधनसम्पादित सकलजीवाभयदान प्रवर्तन श्रीहीरसूरि पट्टालङ्कार-गो-महिष-महिषी वधनिवर्तन - बन्दिग्रहणमोचन स्फुरन्मानकारक-श्रीशत्रुञ्जयतीर्थकरनिवारकपातसाहि श्री अकब्बर सभासमक्षलब्धजयवाद-भट्टारक श्रीविजयसेनसूरिभिः ।
ऐतिहासिक अनेक विगतो धरावतो आ लेख छे. आमां सं. १६५६मां इलाही सन ४५ होवाचं जाणवा मळे छे. मोढ ज्ञाति मूळे जैन होवानुं तो सिद्ध छे ज, पण १७मा शतकमां पण ते जैनधर्मी होवानुं जाणी शकाय छे. एक श्राविकाए पोते प्रतिष्ठानो उत्सव खम्भातमा कराव्यानी विगत आमां सांपडे छे. अकबरने धर्मबोध आपीने तेना द्वारा गोवध तथा महिष-महिषी (भेंस-पाडा) वधनो निषेध, आमां निर्दिष्ट जैन आचार्योए कराव्याना ऐतिहासिक बनाव, आमां बयान छे. शत्रुञ्जय तीर्थनी यात्राए जनारे भरवो पडतो करवेरो (जजीया वेरो ?) बंध कराव्यानो पण उल्लेख आमां छे. फरमान माटे 'स्फुरन्मान' एवो जैन संस्कृतनो शब्द-प्रयोग पण आमां जोई शकाय छे.
आ प्रतिमा कोई व्यक्तिना निजी संग्रहमां छे. मूळे तो ते एक तीर्थस्थानमा हती. वर्षो पहेला आवी अनेक मूर्तिओ, शंखलपुर वगेरे संघोने माटे साचववी शक्य न होवाथी, सम्पादन करवामां आवेली तथा उचित प्रबन्धपूर्वक साचवेली. ताजेतरमां, गमे ते कारणसर, तेमांनी केटलीक सामग्री
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