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________________ 64 धन माता वामादे राणी जायो तुमसे नंद; सुरनर किंनर आदि देई, नमाये मुनंदजी... श्री० आप तिरे बहुते रे त्यारे, करुणाकर जिनराज; अब हुं श्रुतनोका बसाणा, अपडावें सिवपाजजी... श्री० कर जोडी सेवक जिन विनवें, अरज सुणो महाराज; मानदत्त चेराकी तुमनें, बाह गहेंकी लाजजी... श्री० ॥ इति [ चिन्तामणि पार्श्वगीत ] संपूर्णं ॥ (८) | देशी । नरुकाका गीतनी ॥ रे जिनेस्वर साहिबा माहरी अरज सुणीजोजी० आं० लख चौराशी योनमेंजी, भ्रमत फिर्यो बहुकाल; दुःख अनंता में सह्याजी, साहिब दिनदयाल. तारणनो बिरुद सांभलीजी, श्रीगुरकेरी वांण; जब में तुमपें आवियोजी, साहिब चतुर सुजाण ... जि० इण अवतारें साहिबाजी, भेट्या देव अनंत; पिण को काज सर्यो नहीजी, सांभल श्री अरिहंत... जि० मुझमें अवगुण छ घणाजी, कहत न आवें पार; पिण तुम झाज तणी परेंजी, छो प्रभु तारणहार... निरगुणीयांना कर ग्रहीजी, उत्तम छोडें केम; विष विषधर अरु चंद्रमाजी, ईश्वर राखें जेम... ओर कहां तुमें कहुंजी, जीवन प्राण आधार; सेवक जाण मया करोजी, पतित ऊधारणहार... दत्तसरूप सुगुर तणोजी, मान कहै सुविचार; भवसायर तें डुबतोजी, अबकें लेहो ऊवार... ॥ इति स्तवन ॥ Jain Education International अनुसन्धान ३५ For Private & Personal Use Only जि० जि० जि० जि० जि० ४ २ ३ 50 ४ ५ เช่ ७ www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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