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________________ 63 फेब्रुआरी - 2006 जीवाभगवी अंगमांजी, रायपसेणी मझार; अंग उवाई जोईयेजी, अनुयोगद्वार उदार रे... प्रा० ... २ अंबड श्रावक वंदियाजी, मन धर प्रभ ऊलास; जे कुमती मानें नहीजी, जाको नरक निवास रे... प्रा० ... ३ विद्या जंघाचारणेजी, नंदीसर वंद्या रंग;. . ते मूरख माने नहीजी, जोवो पंचम अंग रे... प्रा० ... ४ छठे अंगमाहे कह्योजी, वंदन अरचन दोय; . द्रोपदीयें वंछित लह्याजी, श्री वरधमान विसेष; आर्द्रकुमर प्रतिबूझियाजी, जिनवर प्रतिमा देख रे... प्रा० ...६ सूत्र मानें प्रतमानंदेंजी, (नहीं जी ?), धीठा खरा ही अबोध; चौरासी भ्रमना करीजी, पडसें नरक निगोद रे... प्रा० ... ७ सूत्र सिधांत अधेननाजी, कानो मात्रा हीनः कूडो अक्षर जे कहैजी, ते भवभ्रमना लीन रे... प्रा० ... ८ । जिनप्रतिमा जिनसारखीजी, कही जिनागममांहि; जो प्रतिमा वंदे नहीजी, वंदनीक ते नाहि रे.... प्रा० ... ९ असिआऊसा मन धरीजी, दरशन ज्ञान चरित्त; जिनमुख देखी एह जपोजी, कर नरभव पवित्त रे... प्रा०... १० सीस सुगुर सरूपनोजी, कहै दत्तमान अनूप; एह वचन मन ना धरेंजी, ते पडो ओंड कूप रे... प्रा० ... ११ ॥इति।। [इति जिनप्रतिमापूजा स्वाध्याय] (७) ॥ बैद न कोई असो देख्यो, वेदन मुझ नसाय; नाम तुम्हारों सुणकें प्रभुजी, अब आयों तुम पायजी... १ श्री चिंतामण पास, [तु]म चरणा सीस नमावूजी, में आप तणा गुण गावूजी, में समकित गुण वुजवालुजी... श्री० आं० ... सुंदर सूरति मूरति थारी दीठा मन हुलसाय; कोड भवारी बेदन म्हारी एक पलकम जायली. श्री० ... २ - अनप. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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