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________________ 42 अनुसन्धान ३५ नखँदस वस्तु विचार समन्वित । भाव यथारथ भास ||सु० || पद इग कोटी अधिको जानियै । सहस अशीतिसु भास ||सु० ॥२॥ ए पूरव इभ' द्रव्यें पूजतां । लह्यो शिव सुरतरु कंद ||सु० ॥ रिद्धि अनरगल निद्धि उदय थकी पामें चारित्रनंद ॥० ॥ काव्यं ॥ विष्णुश्चक्रीबलेन्द्रप्रमुखजनगणान्नर्त्तकः संसृताब्धौ । दुर्जेयोऽयं विपाके प्रवरबलयुतैः कृष्णरामादिभिश्च ॥ एतत्कर्मप्रबन्धादिकविविधविचारान्विताम्भोधिरूप स्तस्मात्कर्मप्रवादो हरतु मम रिपूनर्हतो द्रव्यवगैः ॥१॥ ह्रीं० करमप्रवाद पूर्वं० ॥ इति करमवाद पूर्वार्चनम् ||२|| ५२||८||३०| दोहा ॥ पूरव प्रत्याख्याननें, भविजन सुनो मन लाय ॥ सेवो पूजो भावसुं भव भव दुरित पलाय ॥१॥ ढाल ॥ ॥ राग घाटो ॥ चुलिया से योवनावहार भयलों ॥ ए चाल ॥ चुलियासें मनुवावहार होयलों । जिनजी किहां लो मनावुं ॥टेक॥ | मनुवो मोरो खिन खिन अनघर जइले । तोरी वतियां कैसै सुनाइ ||जि० ॥२॥ हिव मोरे अंतराय षयउपशम कर । तोरी वतियां मनुवो भाइ ||जि० ॥२॥ प्रत्याख्यान पूरव अवगाही । खमित वस्तु संयुत्त ॥० ॥३॥ ग्रहकृत्यत्रिक अधिलक्ष पद भाख्यो । ते होयलों मंगल वित्त 11 foto 11811 द्रव्याष्टक करि एहनें पूजित । थायें परम पवित्त ॥ जि० ||५|| हथी निद्धि उदय कर पायो । चारित्रनंदि सुखवित्त ||जि० ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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