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फेब्रुआरी - 2006
ही सत्यप्रवाद पूर्वं० । इति सत्यप्रवादपूर्वं ॥२॥१२॥६॥१८||
दोहा ॥ पूरव आतमवादने आतमबोध विकाश । अष्ट द्रव्य कर पूजतां थायें परम उल्हास ॥१॥
ढाल ॥ विजयानंदन वीनतीजी ॥ए चाल ॥ सपतम पूरव जांणीयैजी नामें आतमवाद ।। पद नखे रस कोटी भजोजी जिम नित थायें आल्हाद ॥१॥ मन मोह्यो मुनिजी नव निधि रिधि श्रुतिधार ॥टेका। करसाखामित धारियेंजी वस्तु विचारसरूप ।। पर आसा पासा तजीजी शिव रिधि थायें जेथी भूप ॥२॥ म० ॥ भव भव सेउं एहनेंजी द्रव्याष्टक भर थाल । तेहथी निद्धि उदय घणोजी थायें चारित्र गुणमाल ॥३॥ म० ॥
काव्यं ॥ आत्मासंख्यप्रदेशानुभवहृदयगं सर्वदा ज्ञानरूपं । नित्यं स्वात्मस्वरूपैविमलशुभतरं स्थैर्यभावेन युक्तं । तस्मादात्मैकभेदे नयवचनविधौ नैकधोक्तं जिनेन्द्र स्तद्वादोक्तात्मवादं सुचितरसरसैर्द्रव्यनागैर्यजामि ॥१॥
नहीं० ॥ आत्मप्रवादपूर्वं० ॥ इत्यात्मप्रवादार्चनम् ॥२॥१२॥७॥१९॥
दोहा ॥ पूरव करमप्रवादने भाष्यो श्रीजिनराज । जिणवाणी जिनवर समो सेवो भवि सुखसाज ॥१॥
ढाल ॥ धरम जिनेसर गांउ रंगसुं ॥ए राग ॥ करम प्रवाद पूरव भजो भावसुं । जांणो मूलोत्तर करम ॥ सुरिजन ॥टेका। जिनवर भाखै मुनि जन आगलै । तेण लहै शिवशर्म ।।सु० ॥१॥
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