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________________ 34 . अनुसन्धान ३५ काव्यं ॥ स्वपक्षकाजीविकरत्नराशिजिनेन्द्रसिद्धान्तगजेभसूत्रैः । समन्वितं कर्मनिवारणायाहं श्रीदृष्टिवादे प्रणमामि सूत्रं ॥१॥ ही श्रीमदृष्टिवादे सूत्रेभ्यः कु० ॥२॥ . ढाल ॥ दृष्टिवादेंजी तीजो श्रुतिसुखधाम ए । पूरवगतजी चउद भेद अभिराम ए। उतपादोजी १, अग्रनीय २, वीरज ३, नाम ए । अस्ति नास्तीजी ४, नान ५, सत्य ६, गुणठाम ए । जूटक ॥ गुणठाम आतम ७, करम ८, पचखान ९, विविध विद्यावाद ए १०, इग्यारमो अवंध्य पूरव ११ प्राणावाय प्रवाद ए १२ । विविध संयम भाव सूचक किरियाविशाल वखान ए १३, बिंदुसार ए पूरवगत १४, श्रुति कुसुमांजलि परधान ए ॥१॥ काव्यं ॥ बह्वर्थसद्भावविचारयुक्तमुत्पादकाद्यब्धिदशप्रभिन्नं । श्रीदृष्टिवादे श्रुतिरत्नपुझं नमाम्यहं पूर्वगतं शिवाय ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीदृष्टिवादे पूर्वगतश्रुतिभ्यः कु० ३।। ढाल ॥ अंग बारमें जी अनुयोग जुगविध भाव ए । सूत्र सार्थेजी अनुरूप योग ज नाव ए । तिहां मूलेंजी प्रथमानुयोग वखानियै । तिम बीजोजी गंडिकानुयोग पहिचानियै ॥ त्रूटक ॥ पहिचान प्रथमानुयोग सूत्रे प्रथम दरसन योगथी । भव कलप जिनवर सर कल्याणक सूचना अनुयोगथी । गंडिकानुयोगें कुलगरादिक प्रवर नृपकलप भाव ए । तिन कारने अनुयोग सूत्रं कुसुमांजलि मेलो धाव ए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520535
Book TitleAnusandhan 2006 02 SrNo 35
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2006
Total Pages98
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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