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नवेम्बर
कर्मबीजे तथा दग्धे नारोहति भवाङ्कुरः ||८||
'भुवनसुन्दरी' की निम्न गाथा में प्रतिध्वनित होता हैदडुंमि जहा बीए परोहइ अंकुरो न पुण जम्हा । तह कम्मबीयदाहे न जम्ममरणंकुरा होंति ॥ ८६४२॥ (पृ. ७८८) ३. एक और भी पद्य है जो मेरी स्मृति के अनुसार श्रीउमास्वातिकृत माना जाता है, -
तज्ज्ञानमेव न भवति यस्मिन्नुदिते विभाति रागगणः । तमसः कुतोऽस्ति शक्तिर्दिनकरकिरणाग्रतः स्थातुम् ? ॥ उसका भी छायानुवाद यहाँ मौजूद है :
तं नाणं पिन भण्णइ रागाई जेण उक्कडा होंति । सो कह भन्नइ सूरो विहडावए जो न तिमिरोहं ? ।। ५९८० ।। (पृ. ५४५)
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४. श्रीहरिभद्रसूरि - रचित 'पञ्चसूत्र' में 'दुक्कडगरिहा', 'सुकडासेवणं', 'रागदोसविसपरममंतो' इत्यादि पदावली प्राप्त होती है । इस कथा की
'जिणधम्मतत्तनाणं दुक्कडगरहा य सुकडसेवा य ।' 'कम्मविसपरममंतो भवविडविच्छेयणकुढारो ।'
(गा. २९२३-२४, पृ. २६७) इन पंक्तिओं में उस पदावली के अंश पाये जाते हैं । ५. इस पञ्चसूत्र के चतुर्थ सूत्र में 'व्याधितसुक्रियाज्ञात' नामक दृष्टान्त सोपनय लिखा गया है, जो 'विंशतिविंशिका' में भी मिलता है । इस कथा की ८६२४ से ८६२७ इन गाथाओंमें (पृ. ७८६-८७) यह दृष्टान्त, लगभग, पञ्चसूत्र-वर्णित पदावली में ही मिलता है, जो बड़ा रोचक है ।
(६)
कितनेक रूढिप्रयोग या लोकोक्तिस्वरूप कहावतों का प्रयोग भी इस ग्रन्थ में किये गये है । जैसे
१. 'घुणक्खरो नाओ' (गा. ३६०, पृ. ३४ )
२. 'नो भज्जइ लउडी न मरइ ससओ' (गा. १३३२, पृ. १२२)
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