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September-2005
देव-देवी उपासना सारी रीते व्याप्त हता. प्रस्तुत रचना ए पृष्ठभूमि पर रचाई छे. कविने संघबहार मूकवामां आवेला ए घटनाना कारण तरीके आवी 'अन्याश्रय' ( वीतराग देव सिवायना देवोनो आश्रय )नी प्रवृत्ति होइ शके एवो विचार सम्पादक श्री राज्यगुरुए दर्शाव्यो छे. किन्तु ते समयनी यतिओनी प्रवृत्ति जोतां आवी अन्य उपासनानो झाझो छोछ आचार्यादिने न पण होय अने संघ बहार करवानुं कारण कोई बीजुं ज होय एवी सम्भावना पण नकारी शकाय नहि.
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कडी ७१. मांनो 'चेंते' शब्द कच्छी भाषानो न होइने 'चिते' (विचारे) नो ज उच्चारभेद होय एवी सम्भावना वधु छे. कच्छीमां 'चेंते ( कहेतो हतो ) एकवचननुं रूप छे, ज्यारे अहीं प्रयोग बहुवचननो छे - 'अमे' शब्द कडीमां ज छे. वळी कविनुं गुजराती परनुं प्रभुत्व जोतां ते आवो भाषा संकर करे एवी शक्यता ओछी ज छे.
गरदी (क.७०), खेरु (७१), जोपें (७८) जेवा शब्दो शब्दकोशमां लेवा जेवा छे. छाली (क. ४१) नो अर्थ 'बकरी' छे. 'नाहर' (४१) वाघ के वरू जेवुं प्राणी होइ शके.
'सुगणबत्तीसी' अने 'सूतकचोपाई' शुद्ध रूपे मूकाया छे. बन्ने रचनाओ प्रमाणमां अर्वाचीन होवाथी भाषा स्वयंस्पष्ट छे अने अशुद्धि प्रवेशी नथी.
'मेघदूत' ना अभिनव अर्थघटन करती बे कृतिओ एक ज अंकमां प्रगट करीने सम्पादके सारो जोगानुजोग ऊभो कर्यो छे. व्याकरण - काव्यअलंकार - छन्द-शब्द कोश वगेरे साहित्यना अंगोनुं सुदीर्घ- सविस्तर परिशीलन होय अने ज्ञानावरणीयनो क्षयोपशम विशिष्ट कोटिनो होय त्यारे अने तो ज आवी जटिल रचना सर्जी शकाय ए विद्वानोना मस्तिष्क केवां तीक्ष्ण, कल्पनाशील अने स्फूर्तिमान हशे तथा संस्कृत भाषा केटली नमनीयता धरावे छे ते आवी कृतिओमां प्रत्यक्ष थाय छे. व्युत्पन्न (अभ्यासी) अने प्रत्युत्पन्न (चबराक - Smart) मस्तिष्क धरावता विद्वानोनो आ साहित्यविनोद आश्चर्य प्रेरे एवो छे. श्री समयसुन्दर तथा श्री मानसागर - बन्ने विद्वानोए विलक्षण अर्थघटनोना आधार रूपे ढगलाबंध शब्दकोशोना उद्धरणो, अनेक न्यायो, अन्य कविओना
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