SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान ३३ ने स्थाने 'शङ्कित' होई शके. श्लो. ६ च. २मां 'द्रवितं' ने स्थाने 'द्रविणं.' शब्द उचित बने. 'गौतमगणधरस्तव' (सूरप्रभगणि कृत)मां श्लो. ६ मां - 'सर्पिर्मधु- स्वादीय:परमानपूर्णजठराः' एवो समास वांचवो जोइए. 'स्वादु' ने ईयस् प्रत्यय लाग्यो छे. श्लो. ७मां '-दिन' छे त्यां 'अदित' (दा धातुनुं अद्यतनी, रूप) स्पष्ट रीते बंध बेसे छे. 'संघयात्राना ढालिया' नामक प्रलंब गुजराती रचना अनेक रीते रसप्रद-ध्यानाकर्षक थाय एवी छे. राजनगर-अने गुजरात-काठियावाडना पणतत्कालीन श्रावकवर्गनी धार्मिक गति-विधि- दोढसो वर्ष पूर्वेनुं रम्य शब्दचित्र आ कृतिमां अंकित छे. सम्पादकश्रीए आखी कृतिनो सारांश, उचित टिप्पणी साथे आप्यो छे, नोंधपात्र तारण पण आप्यां छे. कर्ता श्रावक कवि छे, जैनत्वना रंगे रंगायेला छे तेथी हृदयनी ऊर्मिओ कृतिमां बळकट रूपे ऊतरी आवी छे. गुजरातीनुं तत्कालीन स्वरूप तो आमां सचवायुं ज होय, विशेषमां जैनसमाजना रीति-रिवाज, जनमानसनी छाया, सरकारी तंत्र वगेरे वातो पण आ कतिमां जोवा-जाणवा मळे छे. ढा. १०मां अम्बिकाना वृत्तान्तमां 'करपीअधम कुल-देश'नी वात करतां 'कछ-सिंध-काबुल' देशोनो उल्लेख कविए कर्यो छे. ए समये राजनगरना जैनोमां 'कच्छ' माटे आवो ऊतरतो ख्याल प्रवर्ततो हतो. सम्पर्कनो अभाव तथा चडियातापणाना तत्कालीन ख्याल वगेरे आनी पाछळनां कारणो होई शके. 'चतुर्विंशतिनमस्कार' चौदमा-पंदरमा शतकना जैन भक्तिभावनुं प्रतिबिम्ब झीलती रचना छे. प्रभुस्तवननो महिमा दर्शावती आ कृतिमां परमात्माना गुणवर्णन/महिमा जेवी वातो क्यांय नथी देखाती, ए ध्यानमा लेवा जेवं छे. गा. १०मां 'तेसु कयत्थ' छे ते ठेकाणे 'ते सुकयत्थ' वधु सार्थक लागे छे.गा. ११मां 'चलु' छे त्यां 'बलु' होवू घटे. 'ताहअण'नी जग्याए 'ताह आण' होवानी शक्यता छे.. 2. ढा. १०मा बल' देशोनो उल ख्याल अनु० ३२मां जैन मुनि उदयरत्नकृत 'जोगमायानो सलोको' घणी बधी रीते सूचक-मार्मिक कृति गणाय. यति-गोरजीनो युग जैन श्रमणसंघमां सारा एवा लांबा गाळा सुधी चाल्यो छे. यतिवर्गमां यन्त्र-मन्त्र-तन्त्र अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520533
Book TitleAnusandhan 2005 09 SrNo 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy