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अनुसन्धान ३३
प्रयोगो वगेरे रजू कर्या छे. चित्रकाव्यो-कूटकाव्योने स्पर्शता न्यायो अने नियमो समजवा जेवा छे.
__ भाषाना प्रयोगविषयक नियमो- - 'द्वौ नौ प्रकृत्यर्थं सूचयतः' (पृ. ४२) - बे नकार मूळ वातने सूचवे
छे अर्थात् हकारात्मक अर्थ जणावे छे. (अन्यत्र आ सूत्रमा 'प्रकृतमर्थं एवो पाठ जोवामां आवे छे अने ए वधु संगत जणाय छे.) 'यत्र नान्यत् क्रियापदं तत्रास्ति-भवतीति क्रिया अनुक्तापि प्रयोक्तव्या' (पृ. ४३)- जे वाक्यमा क्रियापद अपायुं न होय तेमां अस्ति, भवति क्रियापद समजवां. 'यत्तदोनित्यसम्बन्धात्' (पृ. ४५) - यत् अने तत् (जे-ते) सर्वदा सम्बन्धित होय छे. 'भीमो भीमसेनः' (पृ. ४५) - शब्दना भागथी पण आखो शब्द सूचवी शकाय छे. 'भीम' कहेवाथी आखुं मूळ नाम भीमसेन सूचित थाय छे. 'एते चतुर्दशापि पादपूरण-भर्त्सनामन्त्रणनिषेधेषु' (पृ. ४७) - अ, आ वगेरे चौदे स्वरोनो प्रयोग श्लोकना पादपूरण माटे थई शके छे, तिरस्कार-ठपको, सम्बोधन अने निषेध-मनाईना अर्थमां पण थई शके छे. 'गत्यर्थानां ज्ञानार्थत्वात्' (पृ. ६३), 'गत्यर्थानां प्राप्त्यर्थकत्वात्' (पृ. ६९) - गति अर्थवाळा धातुओ ज्ञान अने प्राप्ति अर्थमां पण प्रयोजी शकाय छे. 'तत्स्थे तद्व्यपदेशात्' (पृ. ७९) - स्थानवाचक शब्द ते स्थानमा रहेल वस्तुनो बोधक बनी शके छे. 'जातेरैक्यात्' (पृ. ७९) - समग्र जाति जणाववी होय त्यारे एकवचन वापरी शकाय, केमके जाति 'एक' ज होय छे.
आमांना घणाखरा नियमो संस्कृत सिवायनी भाषाओमां पण एकसरखी रीते कार्यरत होय छे. आ विवरणोमां उद्धृत थयेला केटलाक श्लोको/सूत्रो
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