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________________ विहंगावलोकन-३० उपा. भुवनचन्द्र आ अंकमां प्रगट थयेली, म. विनयसागरजी द्वारा सम्पादित 'धर्मलाभशास्त्र' कुतूहल जगावे एवी रचना छे. रचयिता महो. मेघविजयजीनी बहुमुखी प्रतिभा विद्वज्जगत्मां जाणीती छे. प्रस्तुत कृति ज्योतिषशास्त्रना अभ्यासीओ माटे रसप्रद बनशे. श्री विनयसागरजी द्वारा प्रस्तुत 'वाचक प्रमोदचन्द्र भास' एक ऐतिहासिक साधन लेख महत्त्वपूर्ण छे. प्रमोदचन्द्र वाचक विशे पार्श्वचन्द्र गच्छना साहित्यमा उल्लेख मळे छे. भासना कर्ता करमसीहे 'रोहिणी चोपाई' (र.सं. १७३०)रची छे अने ते 'जैन राससंग्रह' (सं.श्री सागरचन्द्रसूरि)मां प्रकाशित छे. . मध्यकालीन गुजराती साहित्यना भण्डारमा महत्त्वपूर्ण उमेरो करती एक दीर्घ रचना 'वासुपूज्य जिन पुण्यप्रकाश' आ अंकनी मुख्य कृति छे. कृति अनेक रीते विशिष्ट छे. कर्ता मुनिवर प्रौढ-शास्त्रज्ञ-कवि छे, तेवी प्रचुर समासो, संस्कृत शब्दो, संस्कृत शैली आ म. गुजराती कृतिमां ऊतरी आव्या छे; तेम छतां रचना भारेखम नथी बनी; म. गुजरातीने आंच नथी आवी. सम्पादिकाए कर्ता अने तेमनी अन्य कृतिओ विशे वधु माहिती आपवा जेवी हती. स्तवनमां देशी, ढाळ अने रागोनो ढगलो छे. आ स्तवननी ढाळोनी देशीओ घणी खरी आज सुधी वपराती-गवाती आवी छे. ए बतावे छे के आ रचना सारा एवा समयगाळा सुधी जैन जगतमां प्रचलित रही हशे. "भाई धन्त सुपन... (पृ. ४०), 'प्रथम एरावण दीठो.... (पृ. ३९) जेवी देशीओ अन्य कृतिओमां खूब वपराई छे. केटलीक प्रचलित देशीओनां शास्त्रीय नामो अहीं नोंधाया छे. उदा. : 'आप स्वभावमां रे अवधू...' ए सज्झायनी देशी जेवी देशी अहीं ३४मा पाने जोवा मळे छे, जेनो राग 'अधरस' अहीं नोंधायो छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520533
Book TitleAnusandhan 2005 09 SrNo 33
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2005
Total Pages102
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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