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September-2005
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सुप्रसिद्ध विद्वान् हुए हैं। यह शाखा आज भी उपशाखा के नाम से विद्यमान है। इसी क्षेमकीर्ति शाखा में धर्मसुन्दर के प्रशिष्य और धर्ममेरु के शिष्य वाचक लब्धिरत्न गणि हुए हैं। अतः यह निर्विवाद सत्य है कि लब्धिरल गणि खरतरगच्छ की परम्परा में क्षेमकीर्ति शाखा में हुए हैं ।
कर्ता ने रचनास्थान का नाम नवहर नगर दिया है । यह आज नौहर के नाम से प्रसिद्ध है जो बीकानेर स्टेट में है । शादुलपुर स्टेशन से हनुमानगढ़ जाने वाली रेलवे का स्टेशन है । हा, मुनिसुव्रत मन्दिर के स्थान पर आज पार्श्वनाथ का मन्दिर विद्यमान है ।
श्री कनुभाई से मेरा अनुरोध है कि अपने सन्देह का निराकरण करते हुए कर्ता की गच्छ और गुरु परम्परा एवं स्थान का संशोधन करने का कष्ट करें।
पुनश्च- उक्त लेख मैंने निर्ग्रन्थ के सम्पादक श्री जितेन्द्रभाई शाह को भेजा था । इस सम्बन्ध में लेख के सम्पादक श्री कनुभाई सेठ का दिनांक १०-०१-०३ को पत्र प्राप्त हुआ जिसमें उन्होंने लिखा :
____ आप का पत्र श्री जितुभाई से मिला । आभार : आपने जो सुझाव दिया है वह सोचनीय है । मै अभी इस बारे में संशोधन करुंगा और जो कुछ तथ्य मिलेगा वह आपको निवेदित करुगा।
ढाई वर्ष के अन्तराल में भी उन्होंने अपने लेख और विचारों में संशोधन किया हो ऐसा प्रतीत नहीं होता । इसी कारण यह चर्चा लेख रूप में प्रस्तुत है।
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