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September-2005
राग मल्हार ॥ सुरराजि सिरुसखित्त(?) चरणां-तलिं कनककमल ज करि निरमल पुण्य पोति भंडार, भवजलनिध सुर एणी जुगतिं तरि ॥२१॥ तिहा कुसुमगंधि बहिकि अति, ध्वजा दंड उपरि ऊची लहकंति । भामंडल तेजइ झलहलंति, विश्वसेन मल्हार नीकु दीपंत ॥२२॥
श्रीराग ॥ इसी युगति आठ प्रतिपाली टाली बहु मिथ्याते घन । समेताचलनि शृंगि मनोहर पहुता साथि साधु जन || सेव करइ नरा सोधइ(?) कोडाकोडि अमर सिंहा आवि गावइ
सुर श्रीराग करी अणसण लेइ करम खपेइ जिनवर मुगतिरमणि ज वरी
सिद्ध हवा भवजल तरी ॥२३॥
राग टोडी ॥ सो शांतिनाथजिन राव सुणु हमारा एकाग्रचितु नितु सेव करु तुहारा ।। संसारसागर दु(?) पारग तारि सामी करुणानिधि करि कृपा मुझ पारगामी ॥२५॥ चउरासी लष्य जीवाज्योनि भम्यु हूं देवा कीनी सदा हरिहरादि मुधा सेवा । तू मइ लह्यो नयनभूषण नाथ आज कर्मसंतति टोडी करूं आप काज ॥२६॥
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