________________
68
अनुसन्धान ३३
राग कल्याण ॥ भवियण जण सुणउ हितवात खरी प्रभु सेवउ मन एकांत करी । यम अलिअ विघन सवि जाइ टरी लच्छी घरि आवइ रंग भरी ॥२७|| जस धा(ध?)न्य अनोपम कलपतरु चिंतामणि सम उपमान हरु । सदा सेवीत सुरनर सुंदरु सो सयलसंघ कल्याणकरू ॥२८॥
राग धन्यासी ॥ इम राग कुसुममाला करी पूजा कीनी मइ अतिखरी । मुगतिसिरि दिउ दान ए गा(सा?)मी ए ॥२९।। भवि विधिरता ते धन्या, सिर नामइ तुह एकमना । तेहना वंछित काम सवि सरइ ए ॥३०॥
कलस ॥ तपगच्छनायक मुगतिदायक सकल गुणमणिसागरु श्रीविजयदानसुरिंद्रगच्छपति संप्रति सोहम गणधरु । जगराज पंडित तणइ सीसिं सहजविमल इम वीनवइं ए वीनती जे भणइ भावें अनंत सुख सो अनुभवई ॥३१॥
इति श्री रागमाला-शांतिनाथस्तवनं समाप्तः ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org