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________________ 18 अनुसंधान-३० राग - गोडी ढाल - जग जीव मेलो १७ एक दिन राजसभा ठिउ अंगद सोभित बाहि । गयणंगणि जिम चंदलो हरि यम सुर तरु छाहि रे ॥१७॥ १८ भुजबल संसीइ राउ रे पुण्य प्रसंसीइ । सची विबुद्धि उपायो रे भुज बल संसीइ ॥१८॥ विमलबुद्धि मंत्री प्रतई राय भणि सुणि वात । नृपई अधिकं भुजबल जेणइ कीजइ रिपुपातो रे ॥१९॥ भुज० । २० वलतुं मंत्री इम भणइ सुणि तूं अम नरदेव । पुण्य विना भुज बल नही पुण्यइं सुर-नर सेवो रे ॥२०॥ __ पुण्य प्रसंसीइ । आंकणी । २१ पुण्यई लछी घरि रमइ पुण्यइ तनु नीरोग ।। पुर्णिय इंद्रीं पडवडां पुण्यई वंछित भोगो रे ॥२१॥ पुण्य० । २२ पुण्यइं सुभोजन रसवती पुण्यई सुसीली नारी । पुण्यइं सुखभरि जीवीइ गज गाजि घरबारि रे ॥२२॥ पुण्य० । पुण्यई भगता सुत सुता रूप भलूं सुख भोग । शोक नही घरि प्रभुपणुं प्रणमइ त्रिभुवन लोगो रे ॥२३॥ पुण्य० । २४ पुण्यइं पुण्या ढो हवो जगि अतुलीबल राय । तस पवित्रं चरितं सुणो ते सुणतां सुख थाइ रे ॥२४॥ पुण्य० । राग - वेइराडी ॥ २५ पदमपुरं जगि जाणीइ । सुरपुर सरिखं अ ठाम रे । तिहां तपनो वरनायको दुरित समई जस नामई रे ॥२५॥ पद० । २६ एक धनावय सेठिउ तेणिं गज आणीइउ एक रे । ऐरावण सम आपीउ हरख्यो राय विवेक रे ॥२६॥ पद० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520530
Book TitleAnusandhan 2004 12 SrNo 30
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages86
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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