SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ March-2004 59 भवे केटला श्वासोच्छवास लईने आव्यो छे तेने हुं जाणतो नथी. वळी जरानो भोग बनीश, गात्रो शिथिल बनशे त्यारे हुं दुर्लभ धर्मनी आराधना केवी रीते करी शकीश ? शालिभद्र. अने जंबुकुमारनां उदाहरणो छ ज ने ? केटकेटला वैभवोने छोड्या शालिभद्रे ? केटली नानी वय हती जंबुकुमारनी ? __ माता लागणीओथी जीतवानो प्रयत्न करे छे तो ते कहे छे - आ जगतमां सौ स्वार्थर्नु सगुं छे. मने सुखरूप छे ते संयमनी अनुमति आपो तो सारुं छे. आम अनुमति लई आठ पत्नीओने पण मनावी ले छे. पति विना शृंगार शा काजे एम मानती पत्नीओने पण माताले अनुमति आपी दीधी छे एम जणावे छे. अने आ रीते श्रेणिकराजा तेओने वाजते गाजते महोत्सवपूर्वक दीक्षा आपे छे. संयमपालनथी तेओ अनुत्तर विजय विमान नामना देवलोकमां जशे. त्यांथी महाविदेह क्षेत्रमा जशे. त्यां केवळज्ञान पामी मोक्षे जशे एम अन्ते कवि संयमधर्मना फळने जणावे छे. प्रस्तुत कृतिनी मनोहारिता माता-पुत्रना संवादमां छे. जेमां जगतनी तमाम मातानी मनोकामना, पुत्रनी चिन्ता अने वत्सलता केवी होय छे तेनां दर्शन थाय छे. कवि श्री पूनपालकृत श्री मेघकुमार गीत वीर जिणंद समोसर्याजी, वंदइ मेघकुमार सूणी देसण वइरागीउजी, एह संसार असार ॥१॥ हे माऊडी अनुमति दिउ हम आज, संयमसिरि हम काज, हे माउ० आंकणी वच्छ कुणइ तुं भोलविउ रे, श्रेणिक राय निरेस काइ कुणइ कुणइ दूहविउ रे, हुं नवि दिउं आदेस रे ॥२॥ जाया संयम विषम अपारि, किम निरवाहिसि भार सकोमल संयम विषम अपारि । द्वितीय आंचली आदि न(नि)गोदइंहि जिहां रुलिउ हे, सहीआं दुक्ख अनंत सासउसासहि भव पूरिआं हे, ते नवि जानुं अंत ॥३॥ हे माऊडी० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy