SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 58 अनुसंधान-२७ श्री मेघकुमार गीत (संपा.) रसीला कडीआ प्रस्तुत कृति ला.द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर, अमदावादना ग्रन्थभंडारमाथी श्रीलक्ष्मणभाई भोजक द्वारा मने मळी छे अने ते माटे तथा आ कृतिना सम्पादनमा तेमणे करेली सहाय माटे हुं तेमनी ऋणी छु. प्रस्तुत कृति विविध कृतिओना गुटकाना पाना नं. ६१ परथी लीधी छे. एक पत्रनी आ प्रतना गुटकानो सूचि नं- ला.द.ले.सू. ८४६० छे. २१ कडीनी आ कृतिमां प्रशस्ति अने पुष्पिका द्वारा आपणने कर्तार्नु मात्र नाम ज 'पूनपाल' प्राप्त थाय छे. रचना संवत के लेखन संवत प्राप्त थतो नथी. लेखन मु.श्री कर्मतिलके कर्यु छे अने ते मु. श्रीकर्मसुन्दरनी वाचना माटे लखेल होवार्नु जणावेल छे. श्रेणिक राजाना पुत्र मेघकुमार आ गीतना वर्ण्य विषय छे. श्री महावीर प्रभुनी देशना सांभळीने विरक्त बनेला श्री मेघकुमारने दीक्षा लेवानुं मन थतां तेओ पोतानी मातानी अनुमति अर्थे माता पासे आवे छे. कई माता यौवनमां संयमनो कठिन पथ पोतानो पुत्र पसंद करे ए इच्छे ? अहीं पण माता धारिणी अने वत्स मेघकुमारनो अतिसुन्दर संवाद सुचारु शैलीमां निरूपायो छे. केवा लालनपालनमां दीकरो उछेर्यो छे ते मा सुपेरे जाणे छे. वळी क्षणिक आवेशमां विरक्तिनो रंग लाग्यो हशे जाणी माता काचलीना पात्रमा अरसविरस-स्वाद विनानं-बेस्वाद पण होय तेवू भोजन जमवानुं शे, भोंय सूवानुं अने हाथी-घोडा-पालखीने बदले पगे चालीने भमवानुं हशे तेवी वास्तविकता सामे धरीने पुत्रने तेनो सुकोमळ देह अने उछेर जोतां अनुमति आपती नथी. आर्द्रकुमार ने मुनि नंदिषेणने पण संयममां विषय केवो दुर्जय रह्यो हतो तेनां उदाहरणो पण आपे छे अने ऋतुओनो सीधो सामनो करवानो आवशे त्यारे ज संयम अपार विषम लांगशे, ए ठसावे छे. आम छतां, दीकराने तो वीरचरणनो रंग लागी चूक्यो छे. ते ऊखडे तेम नथी, तेथी मातानी आ तमाम दलीलोनो अकाट्य प्रतिवाद करे छे. ते कहे छे के निगोदमां हतो त्यारथी अनंत दुःखोनो साथ रह्यो छे अने आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520527
Book TitleAnusandhan 2004 03 SrNo 27
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2004
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy