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अनुसंधान-२६
१७०९ से १७६० तक निश्चित है । अत: जगतसिंह का वर्णन होने से ये १८वीं शताब्दी के महाकवि एवं संस्कृत के धुरन्धर विद्वान महोपाध्याय मेघविजय कृपाविजयजी के शिष्य न हो कर १९वीं शताब्दी के मेघविजय प्रतीत होते है।
अनुसन्धान-२५ में सिद्ध-मातृका प्रकरण की भूमिका में 'भले मीडी०' ॥ ओम् नमः सिद्धं' पर लेखक ने सुन्दर विचार प्रस्तुत किया है। मुझे स्मरण है कि मारवाड़ में भले शब्द के स्थान पर 'भोले' शब्द का ही प्रयोग होता था । भोले शब्द व्यवहार में शिव का वाचक है । शिव का वाचक होने से भोले शब्द कल्याणकारी, मंगलकारी, सिद्धिस्थान अथवा सिद्ध का वाचक मान सकते हैं ।
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