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________________ December १. - 2003 नवां प्रकाशनो कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यविरचिता अभिधानचिन्तामणिनाममाला, श्रीदेवसागर गणि विहित 'व्युत्पत्तिरत्नाकर' व्याख्यासहिता | सम्पादक : मुनि श्रीचन्द्रविजय गणि । प्रकाशक : रांदेर रोड जैन संघ, सूरत । ई. २००३ । 'अभिधानचिन्तामणि' शब्दकोश विद्याजगतमां हैम कोष तरीके सुख्यात छे. ते पर आचार्यनी स्वोपज्ञ विस्तृत व्याख्या तो छे ज. परन्तु श्रीदेवसागर गणिए पाणिनि-व्याकरणने केन्द्रमां राखीने समग्र कोष पर व्युत्पत्तिदर्शक विस्तृत विवरण लख्युं छे, जे अद्यावधि अप्रकाशित हतुं, तेनुं सम्पादन अहीं थयुं छे. सम्पादके पोताना निवेदनमां नोंध्युं छे ते प्रमाणे परिशिष्टात्मक बीजो भाग हवे पछी प्रगट थवानो छे. आ ग्रन्थमां पण अमुक परिशिष्टो तो छेज. १३१ विज्ञप्ति श्री मोहनलाल दलीचंद देसाईना " जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास " नुं पुनः प्रकाशन थई रह्युं छे. आमां पाछळ आपेल शुद्धिवृद्धि ते ते स्थळे जोडी देवामां आवशे अने शुद्धि-वृद्धिनां विशेषनामोने शब्द - सूचिमां जोडवामां आवशे. आ बाबत विद्वानोनां सूचनो आवकार्य छे. नीचेना स्थळे आपनो अभिप्राय मोकलशो. Jain Education International आ. विजय मुनिचन्द्रसूरि यश मोटर्स १३८७ / १, मुखीवास, मीठाखलीगाम, अमदावाद - ३८०००९ फोन : (ओ.) ६४२५०७१ (रे.) ६६०९६३८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520526
Book TitleAnusandhan 2003 12 SrNo 26
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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