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________________ December - 2003 १२९ पत्रचर्चा म० विनयसागर अनुसन्धान-२५ में मुनि कल्याणकीर्तिविजय द्वारा सम्पादित श्रीराणभूमीशवंशप्रकाशः कृति प्रकाशित हुई । इस रचना के कर्ता महोपाध्याय मेघविजय गणि हैं । इस कृति में मेदपाटीय राणाओं की तीन वंशावलियाँ दी गई हैं । ये तीनों ही वंशावलियाँ भाटों की वंशावलियों के आधार पर हैं । यही कारण है कि यह वंशावली तथ्यपूर्ण और ऐतिहासिक नहीं रही। राणाओं के नाम कई अस्त-व्यस्त हैं, कई छुटभाईयों के नाम हैं, और कई मुख्य सामन्तों के भी । श्री ओझाजी ने भाटों की इन ख्यातों/वंशावलियों को ऐतिहासिक नहीं माना है । तीसरी वंशावली में १२ लक्ष्मणसिंह से लेकर २६ राजसिंह तक नामावली ऐतिहासिक है । ऐतिहासिक वंशावली ओझाजी ने 'उदयपुर राज्य का इतिहास'- दूसरी जिल्द, परिशिष्ट संख्या १, पृष्ठ संख्या ११२८ से ११३१ में दी है । इस रचना में सबसे ज्यादा खटकने वाली बात यह है कि पद्य ४६ में लिखा है कि - आघाट में नरसिंह भूमिपति ने पूर्व में जगतचन्द्रसूरि को तपा बिरुद प्रदान किया था । यह वर्णन कवि ने २५ जगतसिंह के वर्णन के मध्य में दिया है । तपागच्छ की समस्त पट्टावलियों में उल्लेख मिलता है कि सम्वत् १२८५ में आघाट नगर में महाराणा जैत्रसिंह ने जगच्चन्द्रसरि को तपा बिरुद दिया था । अतः यह नरसिंह- भूपति कौन है ? अल्लट के पुत्र नरवाहन हैं या राहप के पुत्र नरपति है ? दोनों का समय भिन्न-भिन्न है । जो १२८५ से मेल नहीं खाता है । महाराजा जगतसिंह का कार्यकाल १७९० से १८०८ है और महाराणा राजसिंह द्वितीय का राज्यकाल १८१० से १८१७ है । इस कृति में पद्य ५४ में कुमार भीमसिंह का भी उल्लेख किया है । भीमसिंह का राज्यकाल १८३४ से १८८५ तक है जबकि महोपाध्याय मेघविजयजी का साहित्य सृजन काल ★ नोंध : 'नरसिंह' को विशेष नाम न मानकर नरों में सिंह सदृशराजा- ऐसा विशेषणपरक अर्थ करने पर इस सवालका समाधान हो जाता है । सं.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520526
Book TitleAnusandhan 2003 12 SrNo 26
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size7 MB
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