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September-2003
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॥३१॥
खाजइं पीजइ कीजई तीय भोग, बोधा बोलई जगि इयाही ज जोग। पंच वखत नमाज गूजारइं, छरीय लेई बहु जीव संहारई ॥२८॥ काजी मूलां कहीइं सुणो साह, खुदाई इयाही फूरमाया राह । साही कहइ ए सब हइं जूठे, खुदाय थकी चालइ अ पूठे । इउं करतां किउं पाईइ दीन, जाकु मन दूनीआसुं लीन ॥२९।।
दुहा ॥ ए सव रजब जूठे कीए, वडवखती कहइ मीर । दुनीआं दीपक एक मइ, श्रवणि सुणे गुरु हीर ॥३०॥ सो हम वेगि बोलाईउ, देखि तास दीना(दा)र । कहणी-करणी सांचउ, जोगीसर संसार
ढाल ॥ ताकी करणी बहुत कठीन, किन पई कही जाय
जीव न मारइं । जूठ नहीं, तीय सहु जिसी माय, कउडी न राखइं पास
एक करइ खुदाकी । लेत नाही काछू गयर दिउ, परवाह न कीसकी खाना खावइ एक बेर, पीवइ ताता नीर बाजी तमासु खेल नाहीं ध्यावइ एक पीर । हरी तरकारी नहीं थालई नाहीं लेत तंबोल नांगे पाउं उ फीरइं, सदो बहु(सदोस हु?) बोलइ न बोल ॥३२॥ बाल उचावई धरम जाणि अ- सेह इं उही (?) देस विलाति सहु गाम फीरइं प्रतिबंध न मोही । सत्तु-मित्त समचित गिणइं, कीसहिं न दीइं दोस महिनइ दस रोजा करइ, न करइ टूक रोस भुइं सोवइ धूपकांलि धूप सीतकालिइं सीत समतिणमणि-नाहीं क्रोध लोभ कामवयरी जीत । पाढ पढइ गुरु ध्यान धरई होवई गुणरागी
॥३३॥
॥३४॥
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