SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 66 ॥१८॥ ॥२०॥ अनुसंधान-२५ ताजा तूरीय तोखार सार जाकु न लहुं पार मोटा मयगल मलपता ए दीसइ केइ हजारि । सेवइ जासु सुलतान खांन उंवरा राय राण रोमी फीरंगी हींदू हठी मूलां काजी पठाण अइसु दूनिमइ कोउ नाही लोपइ अकबर लीह विधिना एही ज आप घड्यो अडीग्ग अबीह जाकइ तेजि सहू लोक सुखी परजा प्रतिपालइ चाड चबोड अन्याई चोर धूतारा टालइ ॥१९॥ आनंद अधिक सुगाल सदा मोटु वडभागी लाहोरनगर मई लील करइ अकबर सोभागी दुहा ॥ परवतसिर जिउं मेरगिरि, ग्रहगण माहे चंद । सेषनाग सहू नाग सिरि, जिउं सुरवरमई इंद। ॥२१॥ सकल छत्रपति तिलकसम, एकदिन सभा मझारि ।। बोलइ अधिक उच्छाहसुं, वचन अमरीत []सधार ढाल ॥ साही कहइ सुणो वात इयारां, दोउ दूनीमई वात आसकारां । एक भले दूनीआंदार भोगी, दूजे फकीर निरंजन योगी ॥२३॥ जोगी सोई जे जोग अभ्यासइ, फूटी कउडी न राखइ पासइ । चित्त लगाई निरंजन धावइ, भलु बूर सुणी खेद न पावइ ॥२४॥ जाकइ जोरुंसुं नाहीं टूक संग, एक निरंजन सेती रंग । खोजी थाई बहु खोज करायो, सांचु जोगी कोए नजरि न आयो ॥२५॥ बहु उवोलइ इउं अकबरभूप, जोई जोउं सोउ रसरूप । सेष दरवेस सोफी इउ चालइ, हीक्क कहइं उर कूतुक उच्छालइं ॥२६।। भंगि पाई होवई अति लाल, संखला पहरी दीसई विकराल । नामि जोगी फूनी इयाही ज भेष, नामि सन्यासी सन्यास न रेख ॥२७|| ॥२२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520525
Book TitleAnusandhan 2003 07 SrNo 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy