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________________ अनुसंधान-२५ कविओए कृतिरचना करवानुं बीडं झडप्यु एमां कविओनी सज्जता देखाई आवे छे. आवी रचनामां केटली कल्पनाशक्ति कामे लगाडवी पडे ते तो संस्कृतना ऊंडा अभ्यासीओ ज समजी शके. छन्दोना नाम साथेनु नेमिनाथस्तवन एक अभ्यासयोग्य रचना छे. कुमारसम्भवादि महाकाव्योनी अनुकृति/पादपूर्ति रूप चार लघुकाव्योना रचयिता श्री रविसागरजी प्रखर प्रतिभाना धारक जणाइ आवे छे. कुटुम्बनाम-सुखडी नाम युक्त बे रचनाओ पण आ ज कविनी छे. श्रमणसंघना इतिहासमां आवी प्रखर प्रतिभाओ केटली स्थान लई चूकी हशे तेनो वास्तविक निष्कर्ष कदी नहि आवी शके, केमके अगणित कृतिओ कालकवलित थई चूकी हशे. 'गिरनारवर्णन' श्लो. ९२ना बीजा चरणमां अक्षरो खूटे छे. 'जिनशतक'नी अनुकृतिमां श्लो. १३मां 'भ्राज्यशोकद्रुमस्य' (?) छे त्यां 'भ्राजि + अशोक' एम लइए तो. 'शोभता-चळकता एवा अशोक वृक्षना' एवो अर्थ मळे. एज श्लोकमां 'मा व्याघातापजाभूत्' छे त्यां ‘मा व्यथा तापजाऽभूत्' पाठ समजवो जोईए. श्लोक २३ मां 'पदीयं' छपायुं छे त्यां 'यदीयं'ठीक लागे छे. 'चार ध्यान विचार'ना संपादकीय हस्तप्रतमां कृतिना अंते चार दोहा शा माटे नोंधेला छे ते विशे संपादिकाए प्रश्न को छे. वस्तुतः लेखक/ लिपिकारोनी तथा प्रतिना मालिकोनी एवी शैली हती के प्रतिना अंते जगा वधती होय तो त्यां कोई रसिक, माहितीप्रद दूहा- श्लोक वगेरे नोंधी लेवा. 'चीचीतारी' शब्द अशुद्ध जणाय छे. _ 'कोठारीपोळ चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्तवन' अने 'रतनगुरु रास' बने रसप्रद कृतिओ छे. संपादिकाए प्रतिपरिचयमा प्रतो क्या भंडारनी छे ते नोंध्यु नथी. चि. पार्श्वनाथ स्तवननी पांचमी कडीमां 'चोबारो' शब्द छे तेना पर संपादिकानुं ध्यान गयुं नथी जणातुं. आ शब्दनो अर्थ 'चार द्वार वाळु' थाय. देरासर चार दरवाजावाळु हतुं एवी महत्त्वनी माहिती आमांथी फलित थाय. आ देरासरमां चार द्वारवाळो मण्डप छे के नहि ते नोंधवू पडे. मल्लिनाथ प्रभुनी प्रतिमाओ विशे अने 'प्रबन्धकोश'गत महत्त्वपूर्ण विगतो विशे श्री शीलचन्द्रसूरिजीनी नोंध माहितीसभर छे. प्रबन्धोमां ऐतिहासिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520525
Book TitleAnusandhan 2003 07 SrNo 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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