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September-2003
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दृष्टिए अगत्यनी होय एवी घणी बधी वस्तुओ भरी पडी होय छे, तेम गरबड़गोटाळा पण इतिहासने नामे नोंधाइ गया होय छे. सिद्धर्षि विषयक प्रचलित मान्यता निराधार होवा छतां बहु प्रचलित छे. आवी कथाओ वार्तारस पूरो पाडे अथवा कोइक बाबतने वधु पुष्टि आपे त्यां सुधी तो ठीक छे, पण तेना आधारे केटलीक अन्य धारणाओ प्रस्थापित थई जाय त्यारे सत्यने हानि थाय. आथी ज ऐतिहासिक दृष्टि केळववी आवश्यक बनी रहे छे.
आ ज नोंधमां बप्पभट्टिसूरिना प्रसंगमां भा.शु. पंचमी विषयक चर्चा छे. भादरवा सुदि पंचमीए बप्पभट्टिसूरि राजा साथे नावमां बेसीने कोई तीर्थमां गया हता. एना परथी समजाय के तेओ चतुर्थीना पर्युषण करनारा हता. वधुमां राजाना मान खातर आवी रीतनो नौकाप्रवास पण तेओ करता हता.संपादकश्री नोंधे छे के चोथ/पांचमना विसंवादमां आ प्रसंग सूचक बनी रहे तेवो छे. आ प्रसंग पर्युषण दिवसना विवादमां कई रीते षोपयापक बने ते अंगे संपादकश्रीए वधु स्पष्ट निर्देश कों होत तो उपयोगी थात. ' ।
'बीजा देवलोके गया' - आ प्रकारना उल्लेखोने आधारे तार्किक चर्चा के व्यावहारिक प्रश्नोमां कोई निर्णय पर आवळू मुश्केल अने मुश्केलीजनक बनी रहे. अन्य आचार्यो / मुनिओना सम्बन्धमां पण आवा ज प्रघोष चालता होय तेने पण यथातथ स्वीकारवानी आपत्ति आवे. आवा महिमावर्धक प्रघोष ते ते महापुरुषना भक्तवर्गनुं सर्जन होवानी संभावना वधारे गणाय. आपणे महापुरुषोनां कार्यो के कथनोनां आधारे ज तेमनुं मूल्यांकन करवानू धोरण स्वीकारवू वधु सलामत गणाय.
जैन देरासर __ नानी खाखर- ३७०४३५
कच्छ, गुज. नोंध : 'अनु.' २४मां 'अठोतरसो नामें पार्श्वनाथ स्तोत्र' प्रसिद्ध थयुं छे. तेना
संपादकीयमां आ पंक्तिओना लेखके एक नाम खूटतुं होवान नोंध्युं छे. किन्तु कृतिमाथी पूरां १०८ नामो मळी रहे छे. कडी-६मां 'जोधपुर' नाम छे, जेनो समावेश सूचिमां सरतचूकथी थयो नथी. अभ्यासीओए आनी नोंध लेवा विनंती.
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