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________________ विहंगावलोकन मुनि भुवनचन्द्र अनुसंधान - २३मां एक सुदीर्घ प्राकृत रचना छे, उच्च साहित्यिक कक्षानी आठेक लघु कृतिओ छे, एक गुजराती महालेख, त्रण गुजराती कृतिओ, बे विस्तृत अभ्यासनोंधो पण छे. आम, विषयवैविध्य अने लेख संख्यानुं सन्तुलन आ अंकमां सारुं जळवायुं छे. 'श्रुतास्वाद' नामक प्राकृत कृतिनो विषय बोधात्मक छे. श्री सकलचन्द्र वाचक कवि तरीके इतिहासप्रसिद्ध छे. प्रत्येक श्लोकमां वर्णसगाई अने प्रासोनी धारा सहजतया वही नीकळी छे ते नीवडेला कवित्वनी परिचायिका छे. कविए केटलीक छूट लीधी जणाय छे. श्लो. ६१ मां 'स + उग्गसेणं' ने स्थाने 'सोग्गसेणं', श्लो. ४१मां 'कुणस् + अप्पं'नी संधि 'कुणसुप्पं' नियमविरुद्ध छे. श्लो. ९४२मां त्रीजा चरणमां द्रव्य उपकारनुं वर्णन छे. संपादके 'सुयणाणा' पाठ कल्पीने अशुद्धिनुं निवारण सूचव्युं छे. परंतु अहीं द्रव्य परोपकारनी वात छे ते जोतां 'सुयणाण' अप्रस्तुत छे. औषधदान वगेरे द्रव्य उपकारमां समाय. आथी 'पढमो ओसहदाणाइ' एवो पाठ कल्पवो पडे. तेमांय छन्दोभंग थतो होवाथी 'पढमोसहदाणाइ' एवो सन्धिनियमभंग करवानो थाय अने कविने ते इष्ट पण हशे एम अनुमान थाय छे. श्लो. १४७मां प्रथम चरणमां 'सुसंगो'ने स्थाने 'संगओ' पाठ वधु उपादेय बने - अर्थनी तथा प्रासनी दृष्टिए श्लो. १५२मां अशुद्धि छे 'धहयसु' पाठ बेसतो नथी. कुटुम्बनामगर्भित तथा सुखडीनामगर्भित कृतिओ जेवी रचनाओ संस्कृत भाषानी खूबीओनो पूरो कस काढीने रची शकाय, जेना माटे तीव्र कल्पनाशीलता तथा शब्दकोशनी समृद्धि अने व्याकरणनुं प्रभुत्व जोइए. शब्दवैभव, सन्धिनियमो, उच्चारोनी लाक्षणिकताओ आ बधुं आमां कामे लगाडवुं पडे. व अने ब ड अने ल जेवा वर्णो वच्चे साहित्यकारो अभेद स्वीकारे छे, ए सगवड अहीं खूब काम लागे. छन्दोगत अने सन्धिगत छूटछाटो पण मददरूप थाय. कुटुम्बनामो अने मीठाईनामो जेवी एक सरखी सामग्रीमांथी बे Jain Education International - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520525
Book TitleAnusandhan 2003 07 SrNo 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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