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________________ 96 आ आरो पंचम नही रे, मानुं चोथो निरधार रे. जिहां जस शासननी रुचि हो लाल. मेरु थकी मरुभूमिकारे, रुडी रुडी रीति रे वा० जिहां छाया सूरतरुतणी हो० अगनि थकी अगर तणो रे, जिम प्रगटें सुवासरे वा० दह दिशि दीपें अति घणुं हो. जिम जावुनद पारस थकी रे, तिम कलिथी गुणहेत रे. वा० जो वीरशासन शुभ रीति हो लाल. ३ जिम निशी दीपक, समुद्रमां रे द्वीप, जीम मरुमां रेव वा० जीम वनमां नगर भलुं हो, भूखमां जिम भोजन वरु रे, जिम तममां उद्योत रे वा० तिम कलिमां वीरसेवना हो. ४ हुं ईम मानु मुझ थकी रे, तालेवर नही कोय रे वा० पाम्यो वीर पद पूजना हो लाल. कोय कोयनें कोयनो रे छें उपगार विशेष रे वा० मुगतिसौभाग्य वाचक भणें हो लाल. अनुसंधान - २५ इति श्रीवीरजिनस्तवनं ॥ २४ ॥ महोपाध्याय श्रीमुक्तिसौभाग्यगणिकृता चतुर्विंशतिका समाप्तः Jain Education International For Private & Personal Use Only d. A - 31, ग्लेडहर्स्ट, फिरोजशाह रोड, सांताक्रुज (वे.) मुंबई - ५४ www.jainelibrary.org
SR No.520525
Book TitleAnusandhan 2003 07 SrNo 25
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages116
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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