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________________ 66 अनुसंधान-२२ नवां प्रकाशनो (माहिती) (१) निर्ग्रन्थ : तृतीय अंक (ई. १९९७-२००२) संपादक : एम.ए.ढाकी : जितेन्द्र शाह, प्रकाशक : शारदाबेन चीमनलाल एज्यु. रिसर्च सेन्टर, अमदावाद-४ ई. २००२. सद्गत प्रो. डॉ. हरिवल्लभ भायाणीना मानमां प्रकाशित थवा निधरिलो, अने हवे तेमनी पुण्यस्मृतिमां प्रगट थयेलो आ विशेष - वार्षिक ग्रन्थ, तेमां समाववामां आवेल अंग्रेजी, गुजराती, हिन्दी, लेख-विभागोने कारणे तेमज ते लेखोनी विविधता तथा विशिष्टताने कारणे स्पृहणीय-संग्रहणीय बन्यो छे. प्रकाशक-संपादकोनी असल योजना तो 'निर्ग्रन्थ'नामना वार्षिक सामयिकने प्रतिवर्ष प्रगट करवानी हती. परंतु गमे ते कारणोसर, प्रतिवर्षे आ ग्रंथ प्रगट थई शकतो लागतो नथी. आशा राखीए के आ अनियमितता दूर थशे, अने आपणने दर वर्षे आवो रूडो रसथाल संपादको तरफथी सांपडवा मांडशे. उत्कृष्ट कागळ पर उत्कृष्ट अने सुघड मुद्रण, रॉयल साईझनां ३५० आशरे पृष्ठो, अने छतां फक्त रु. ३००/- नुं मूल्य- ए पण ग्रन्थनी विशेषता ज छे. (२) श्री आचारांग सूत्र - प्रथम अध्ययन : राजेन्द्रसुबोधनी 'आहोरी' हिन्दी टीका. ई. २००२ हिन्दी टीकाकार : मुनि श्रीजयप्रभविजयजी; प्रकाशक : राजेन्द्रयतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन, आहोर (राजस्थान). (३) अज्ञातकर्तृक चतुर्विंशतिजिनस्वन : गुर्जर भाषानुवाद सहित अनुवाद : स्व. साध्वी श्री सुलोचनाश्रीजी. प्राप्तिस्थान : जैन उपाश्रय पीपरडीनी पोळ, अमदावाद, वि.सं. २०५८ संस्कृत भाषानिबद्ध २४ स्तवनो अनोखा प्रकारनी रचना छे. प्रत्येक स्तवनमां नवा नवा विषयो-भावोनुं गुंफन जे रीते थयुं छे ते जोतां रचनार कोई नीवडेला विद्वान्, कवि, साधक साधु होवा जोईए तेवू अनुमान थाय. ते स्तवनोनो अर्थबोध-भावबोध बाल जीवोने थाय ते हेतुथी अनुवादिकाए यथामति अनुवाद आलेख्यो छे. उपलक अवलोकनमां, पाठदोष क्यांक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520522
Book TitleAnusandhan 2003 01 SrNo 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages78
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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