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________________ अनुसंधान-२१ ज राखेल छे. चर्णा (वर्णा) एम करी शकाय. 'सूदर' शब्द पाणीथी चहेरायेल होइ (?)' चिह्न साथे आप्यो छे. 'विष' नहि ', 'विष' छे, 'अग्य' नहि, 'अंग्य' छे; वाचनदोष छे. 'यम नाडि' प्रतमां ज छे. 'मांखीअ ईअलि' आम छे; वाचनदोष. 'भाग' पण वाचननी भूल ज. 'बर्द' बिरुद टेक, ख्याति - त्रण अर्थोमां मळे छे. आ उपरांत केटलीक भूल नजरे चडी छे ते आ प्रमाणे : पृ. ३१, कडी क्र. १०० नी जग्याए २००, पृ. ७७ पर ७३ मी कडी प्रथम चरणमां 'स्युत्र'ने बदले 'स्पुत्र' - (सुपुत्र), पृ. ११० पर पं. १ अने २ मां ६५ ने बदले ६५७ ने ६५९, पं. ३ मां '६५ ९३' ने बदले '६५९ ३', पं. ६ पर 'स्युत्र सूत्र (?)' ने बदले 'स्पुत्र सुपुत्र', एम वांचq. सं.] (२) अनुसंधान-२०नी बधी सामग्री श्रीशीलचन्द्रसूरिजी पासेथी आवे छे. आ अंकमां प्रसिद्ध थयेली कृतिओ विशिष्ट, रोचक अने महत्त्वपूर्ण छे. भंडारोमां दटाई रहेली आवी विपुल सामग्रीने प्रकाशमां लाववानी छे, संशोधन अने संपादन क्षेत्रमा पडेला विद्वान मुनिवरो तथा पंडितोए आ कार्य पण साथे साथे करवा जेवू छे. आथी प्राचीन साहित्यनी सेवा थशे, केटलाक मुंझवता प्रश्नोनो उकेल पण आवी शकशे. आ अंकमां प्रगट थयेल 'वसुधारा' विषयक लेख आनुं सुंदर उदाहरण छे. संस्कृतभाषामां स्तुतिकाव्यो तथा स्तोत्रो विशाल संख्यामां मळे छे, चित्रकाव्योनी परंपरा पण सारी पेठे विकसी हती. प्राय: दरेक समर्थ कविए आ काव्यप्रकार पर कलम चलावी हशे. चित्रकाव्यनी रचना आह्वानरूप होय छे, तेम तेनुं अर्थघटन पण एटलुं ज कठिन होय छे. आ अंकमां प्रसिद्ध थयेल 'चतुर्हारावली स्तव' बौद्धिक व्यायाम अने नावीन्यनो नमूनो छे. श्लोकोनां चरणोना आद्य- अंतिम अक्षरोने तीर्थंकरोना नामाक्षरो साथे बुद्धिपूर्वक जोडवामां आव्या छे, कल्पनावैविध्य अने शब्दरमत द्वारा उत्सुकतानुं निर्वहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520521
Book TitleAnusandhan 2002 09 SrNo 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2002
Total Pages74
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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