________________
ऑक्टोबर २००२
५९ प्रश्ने दरेक संशोधक-संपादकोए करवो ज जोइए - जेमा प्रायः दरेक कविनो संदर्भ मळी जाय तेम छे.
कृतिना पाठमां जे थोडंक सूझ्युं ते नोंg - (क्रमांक स्तवन/गाथाना समजवा) (१/२) हुं सहती : हंस हती (२/२) मन मधु : मन मधु[कर] (८/२) मधुकर समने जाय : मधुकर समरे जाय - भमरो जाईना फूलने
संभारे. (१८/३) मुझ मंदिर : अहीं पाठांतरमां आपेलो 'मुझ मनमंदिर' पाठ वधु
योग्य छे.
स्त. ७, गा. ८मां 'सरवाले' शब्द छे, ते 'सर-पाल' एम लखावो जोइए. आ एक न्याय छे. सरोवरने पाळ जोइए, पाळने सरोवर जोईए, बंने अन्योन्याश्रित छे; ए रीते प्रीति पण परस्पराश्रयी छे.
स्त. १९, गा. ४मां 'विरचे न पडिया वंक' ए पंक्तिमां 'विरचे'नो अर्थ 'कंटाळी जाय, मन ऊंचं करी ले' एवो छे. आ 'विरच' क्रियापद कच्छी भाषामां आ ज अर्थमां आजे पण प्रयोजाय छे, गुजरातीमां लुप्त छे.
म. महावीरना आहारविषयक उल्लेखोना भ्रामक अर्थघटनो विशे शीलचन्द्रसूरिनी ढूंकी नोंध मुद्दासरनी छे. संबंधित शब्दोना वनस्पतिपरक अर्थो आप्या छे त्यां ते कोश/निघंटुनो निर्देश पण आपवो जोइतो हतो. आ विषयमां भूतकाळमां पुष्कळ चर्चाओ थई छे, आजना परदेशीय विद्वानो तेनाथी अजाण होय एम बने. अन्य देशोना पंडितो सुधी समाधान-निराकरण पहोंचे ते माटे Indology संलग्न परदेशनी पत्रिकाओमां एक सर्वग्राही लेख (आयुर्वेद, निघंटु, टीका-चूर्णिओना संदर्भो साथे) लखावो जोइए.
[ स्पष्टता : नीशा, नवि, जिन, नरको, आपोपुं- आटला पृफवाचनना दोष छे. 'कंचुकचर्णा', 'मथो', 'चलइ', 'घलइ' - प्रतिमां आ रीते होई एम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org