SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधान-१७• 169 वक्षेज [निसृजत् पयो० (४९) । वितरणगुणात्प्रोद्यत्पाणिं वचःश्रवणाच्छृति (६२) श्लोक ६३मां 'धर्मक्रियासु दक्षाः' छे, आमां 'क्रिया' शब्दना कारणे छंदोभंग थाय छे. लेखकदोष के मुद्रणदोष न होय तो अनवधानवश कविना हाथे ज चूक थयानुं मानवू पडे. ____ श्लोक ६९मां 'बिभ्यन्ति'' पछी प्रश्नचिह्न छे. अहीं कोई अशुद्धि जणाती नथी. "उपाश्रयनी बहारनी भीतो पर चीतरेला हाथीओने जोइने त्यांथी पसार थता साक्षात् हाथीओ बी जाय छे''-आम अर्थ बराबर बेसे छे. द्विजा यथास्यात्...... (८९) "जरावस्थाना आगमनथी जेम दांत मोढामांथी चाल्या जाय...." श्रद्धालुभिर्भीमगुणैः स्मयोल्लसद् - क्वो निकृत्तो मृदुतासिधारया । (१०५) "बळवान् श्रावको द्वारा मृदुतारूपी खड्गधारा वडे गर्वरूपी चपळ बगलो कापी नखायो." ०द सातनिवहात्तित्यक्षु..... (१२३) श्लोक १२५मां 'कुत्कुतः'ना स्थाने 'तत्कुतः' पाठ कल्पी शकाय. श्लो. १२६मां 'पुष्पव्रतान्'ने स्थाने 'पुष्पव्रजान्' पाठनी संभावना करवानी आवश्यकता नथी जणाती. 'पुष्पव्रत' एटले 'भमरो' लेवाथी अर्थ बेसी जाय छे. ० विधुन्तुदमुखाग्रास: (१३०) यद्रात्रौ स्वकरप्रसारणपर० (१३१). आ श्लोकमां ऽनङ्ककस्या० छे त्यां अवग्रहचिह्न न जोइए. प्रग्रहान् + अङ्कस्या० एम संधि थई छे. स्वर्भाणोस्तु बिभेमि (१३२) . स्तेयं कर्तुमिव प्रसारयति [वै] नक्तं .... (१३३) १. बिभ्यति एवं रूप थाय छे. सं. ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520517
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy