________________
विहंगावलोकन
मुनि भुवनचन्द्र
अनुसंधान - १६ दळदार ग्रन्थ जेवुं बन्युं छे. एक संपूर्ण ग्रन्थ आमां प्रकाशित थयो छे. आ रीते ज्ञानभंडारोमां धरबायेली जैन श्रमणोनी ज्ञानसंपत्ति 'अनुसंधान' द्वारा बहार आवती रहे तो सरवाळे केवुं मोटुं काम थाय एनी कल्पना जे करी शकशे ते 'अनुसंधान' जेवुं सामयिक शरू करवा पाछळना उद्देश्य तथा परिश्रमनी कदर पण करी शकशे.
-
आ अंकमां छेल्ले माहिती विभाग अपायो छे. ते नियमित अपावो जोइए. जैन साहित्य अने प्राकृतविद्याना क्षेत्रे कोण, क्यां शुं कार्य करी रधुं छे तेनी जाणकारी संशोधनकार्यमां पडेला विद्वानोने आशीर्वाद समी थई पडशे. आ क्षेत्रे काम करता विद्वानो पोताना हाथ पर जे काम लीधुं होय तेनी एक नोंध 'अनुसंधान'ने मोकले तो ज आ शक्य बने.
'विज्ञप्तिकालेख' मध्ययुगीन श्रमणसंघनी गति-विधि, गुरुभक्ति, साहित्यसृष्टिनी झांखी करावे छे. संपादक जणावे छे तेम, आना कर्ता विवेकहर्ष गणि होवानो पूरो संभव छे. भुज (कच्छ) अने मोटी खाखर (कच्छ) ना शिलालेखोमां विवेकहर्ष गणिनी विद्वत्ता, प्रतिबोधशक्ति अने राजाओ / नवाबो पासेथी जाहेर करावेल अमारि घोषणानी जे विगतो छे, तेमांथी निष्पन्न थता तेमना व्यक्तित्वनी साथै प्रस्तुत रचना सुसंगत छे संपादके आ लेखमांथी पर्युषणने लगती अने बीजी पण केटलीक विगतो तारवी छे, तेमां एक मुद्दो हजी उमेरी शकाय एम छे. नव व्याख्यान, तपस्या, पूजा, अमारिघोषणा, दान वगेरे कर्तव्योनो उल्लेख करनार कवि स्वप्नदर्शन, वीरजन्ममहोत्सव के तेने माटेनी घृतनी उछामणीनो उल्लेख करता नथी. आना सूचितार्थो, जैन परंपराओनी विचारणा करती वेळाए ध्यानमा राखवा जेवा खरा.
'विज्ञसिलेख 'मां केटलीक शुद्धिवृद्धि करवा जेवी लागे छे :
न चैक पात्त्वं...(१२)
समलोक पालकाः (४५) पयोधरव्रजान् (४७)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org