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________________ अनुसंधान - १७ • 170 'भुवनसुंदरीकथा' मांना श्लोको सामुद्रिकशास्त्रना अभ्यासीओ माटे रसप्रद बने एवा छे. श्लो. ११मां 'विसमबलिणो', 'समबलिणो' छे त्यां वलिणो होवानी पूरी संभावना छे. उदर प्रदेश पर 'वलि' - वळ होय छे तेनो फळादेश आ श्लोकमां छे. 'ललितविस्तर'नो कक्को अने ' व्यंग्यहीयाली' उच्च साहित्यिक आनंद पूरो पाडे छे. प्रकाशनोना परिचयमां 'बारहक्खर कक्क' ना रचयिता 'महमंद मुणि' छपायुं छे, ते मुद्राराक्षसनी मायाथी थयेली गरबड छे के जे छे ते बरोबर छे ? महमंद नाम विचित्र लागे छे. 'देशीनाममालाउद्धार' भाषाशास्त्रीय अभ्यासना क्षेत्रे जैनाचार्योना रस- रुचि तथा परिश्रमना एक मनोहर उदाहरण जेवी कृति छे. आ. हेमचन्द्रे देशी भाषाने पर्याप्त महत्त्व आप्युं ते पछी अन्य आचार्यो मुनिओए ए काम आगळ वधार्यु. प्रस्तुत ग्रन्थ कोई आधुनिक कोश जेवो लागे छे. छेक चौदमी - पंदरमी सदीथी वर्णानुक्रमथी कोश रचावा शरू थइ गया हता एम कही शकाय. प्राचीन गुजरातीनो विधिसर अभ्यास खूब थयो हतो ए तथ्य आ कोशमां 'अन्ये' 'एके' 'केचित्' जेवा उल्लेखो परथी जणाई आवे छे. समय पसार थवानी साथे शब्दोना अर्थोमां संकोच / विस्तार / परिवर्तन थतां होय छे, क्षेत्रभेदे अर्थभेद प्रचलित थता होय छे, तेथी विविध कोशकारोना कोशोमां भिन्न भिन्न अर्थो जोवा मळे ए स्वाभाविक छे. गुजराती, मराठी वगेरे भाषाओना घणा शब्दोनां मूळ दे. ना. मा. उ.मांना शब्दोमां जोई शकाय छे. जेनो बहु ओछो अभ्यास थयो छे तेवी कच्छीभाषामां आमांना केटलाक शब्दो असल उच्चार/ अर्थमां ज आजे पण बोलाय छे. आ हकीकत कच्छी भाषाना अभ्यास माटे महत्त्वनी छे, तेम दे.ना.मा.उ.नी आधारभूततानी दृष्टिए पण ध्यानपात्र छे. आ शब्दकोशमांथी पसार थतां प्रथम नजरे कच्छीभाषा साधे संबंध धरावता जे शब्दो ध्यानेमां आव्या ते अहीं नोंधुं छं. ( प्रथम दे. ना. मा. उ.नो शब्द, पछी कच्छी शब्द, ते पछी कच्छीमां प्रचलित अर्थएवो क्रम राख्यो छे.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520517
Book TitleAnusandhan 2000 00 SrNo 17
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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