SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसंधान-१५ • 92 ऊनामंडन श्रीनेमीनाथ गीत राग : कनडु ॥ समुद्रबिजइ सुत नयनइ देखे प्रीति पाई जिऊं चंद चकोर उन्नतपुरमि उन्नई आए शामघटा घट जिउं घनमोर १ समुद्र० सिव... नयनि राजुल खरी लारि पशुअ पुकार करति तिउं सोर नेमकुमर रथ फेरि सिद्धारे दुःख पावती राजुल अति घोर २ समुद्र० बाउरी भईअ सुनत नही अवनि चाहति नेम चकित चिहुं और जित तित पूछती पीउं कित पाउं कोऊ बताओ नेमकी ठोर ३ समुद्र० गई गिरिनारी राजुल चित प्यारो नेमकुं पाय परति करज्योर कहइ बिनइचंद उन्नतपुर स्वामी नेम आगइ शिवपुर गई दोरि ४ समुद्र० गच्छनायक श्रीविजयसेनसूरिगीत राग : गूजरी ॥ वंदउ श्रीविजयसेनसूरिराय जस पद पंकज भविजन-मधुकर अंमृत बचन पीत आय वंदउ० अकबर भूप महामति सुंदर धरम करत चित्त लाय गुरु उपदेस सुणिउ जब तेरो छ्योरे पंखी सब गाय वंदउ० खान मिलक ऊबरे मिली आवत लागत गुरुके पाय गुरु मुखचंद देख्यो जब तेरो भवि चकोर सुख पाय वंदउ० साह कमा-कोडाईनंदन नरनारी गुण गाय बिनयचंद प्रभु विजयसेनसूरी चिहुं खंडि आन फिराय वंदउ० ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520515
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages118
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy