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अनुसंधान-१५.93
गच्छपति श्रीविजयदेवसूरिगीत
राग : सारिंग मल्हार ॥ अब मि पायोरी परम पटोधर श्रीविजइसेनकु श्रीश्रीश्री विजइदेवसूरीसर सुर नर के मनि भायोरी १ परम० ढुंढत ढुंढत सब गछ देखे तुं मेरे चित्त आयो तप तप तपइ तेज तनुं रविकु तिनथई तुहि सवायो री २ परम० अंजन खंजन मीनमृग लोचनी मोतिन चउक बनायो कोकिल कंठि मयूर मधुरस्वरि श्रीतपगछ गुन गायो री ३ परम० ओशवंश अवतंस थिरासुत मात रूपाई जायो बिनइचंद सेवक के साहिब त्रिभुवनि तिला(क) सुहायो री ४ परम०
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