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________________ 74 भवचक्कवालनयरस्सिमस्स सामी अहं पि ता चिट्ठे । एय पुराणुयं च्चिय-गिह पाडय - गामयाणेगो ॥१३॥ नरयगइ प्पमुहाणं नयरीणं हवउ सामिओ आऊ । वेयणिय - नामगोया य सहयरा होंतु एयस्स ॥१४॥ एसोउ महामोहा नाणावरणाइ कुमरकयसेवो । हवउ असंववहारप्पमुहेसु पुरेसु नरनाहो ||१५|| किं पुण स - घर - विरोहो दूरंदूरेण परिहरेयव्वो । कायव्वं सव्वेहिं वि सया वि साहेज्जमन्नोन्नं ॥ १६ ॥ एमि बहुममि उ सव्वेसि वि तेसिं निवइणो ठविओ । जुवरायपए मोहो मंडलियत्ते पुणो आऊ ॥ १७॥ अणुसासिया य कमसो दुवे वि जह मोहराय ताव तए । अस्संववहार- महापुरस्स चिंता विहेयव्वा ॥ १८ ॥ चोद्दस भूययग्गामाणेगिंदिय पमुह पाडयाणं च । अन्नत्थ वि मह रज्जे चिंता सयला वि तुह चेव ॥ १९ ॥ तुमए वि पुत्त आउय नरयगइप्पमुहपुरविसेसेसु । रयणप्पहायासु य तप्पडिबद्धासु नयरीसु ॥२०॥ नारयतिरियनरामरलोयाण ठिई जहा सया होइ। तह कायव्वं जम्हा तुह चेव पहुत्तणं तत्थ ॥२१॥ अन्नोन्नं च दुवेहि विन चित्तभेओ कयावि कायव्वो । इय सिक्खविरं निय-निय - ठाणे ते पेसिया तेण ||२२|| परिवालेतिं य निय-निय - रज्जाइं गरुय - हरिसमावन्ना । तत्थ य मोह-नरिदँस्स पिया सा मूढया नामा ||२३|| सिं पुणो दोन्नि सुया दंसण-चारित्तमोह अभिहाणा । पास्स पिययमा दिठ्ठिमोहणी नाम विक्खाया ||२४|| मिदंसण संमत्तमीस नामा य तिन्नि तेसिं सुया । चारित्तमोह - दइया अविरइ नाम त्ति तेसिं तु ॥ २५ ॥ वसानर-सेलत्थंभ - सागरा चउमुहा सुया तिन्नि । एका य कन्नया बहुलिय त्ति नामा चउव्वयणा ||२६|| - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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