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________________ 75 अह मोहनराहिवई दंसणमोहं पडुच्च वज्जरइ । जह वच्छ दिट्ठिमोहण सत्ती तुह चिट्ठए महई ।।२७।। ता अस्संववहार-प्पमुह-पुरे पिंडिओ मए लोगो । इय दिट्ठिमोहणेणं मोहिय तह भे धरेयव्वो ।।२८।। अह अन्नत्थ न वच्चइ नायण्णइ इयर-वयणमवि कहवि । इयर-मुहं अनियंतो चिट्ठइ य तुहेव वसवत्ती ।।२९।। वच्छ मए तुह अ च्चिय पहुत्तमेयं समप्पियमसेसं । अपमायपरेणं सया वि भवियव्वमिह तुमए ॥३०॥ अन्नं च तुज्झ जेट्ठो चिट्ठइ जो मिच्छदंसणो पुत्तो । संसय-विवज्जयाइ य उवायजणणंमि सो कुसलो ॥३१॥ इय तुह रज्जे सचिवत्तणंमि संठाविओ मए एसो। तुह कज्जे जयइ सयंपि सो विसेसेण भणिओ उ ॥३२॥ जे वि पिउभाइणो तुह नाणावरणाइणो महासुहडा । ते वि हु गरुय गरुए सामंतपए मए ठविया ॥३३।। एएसिमवि कुबोह - अबोहाइ भडा भमंति सव्वत्थ । अखलियपसरा जे ते वि तुह करेहिंति साहज्जं ॥३४॥ किं पुण तए वि मिच्छादंसणमापुच्छिऊण लोयाणं । आएसो दायव्वो न उ कत्थ वि नियय-इच्छाए ॥३५॥ सम्मइंसणनामो तुह पुत्तो उण न सुंदरो अम्ह । जमहिलसइ उव्वासिउमम्ह पुराइं असेसाई ॥३६॥ निसुयं च मए नणु इह चिट्ठइ दुग्गे विवेय-गिरिसिहरे । जइणपुरंमि नरिंदो सुबोहनामो महाबाहू ॥३७।। सद्दिट्ठी तस्स पिया तेहि य सह संगओ सुओ तुज्झ । इय एयंमि कुपुत्ते वीसासो भे न कायव्वो ॥३८॥ एत्तो चेव पवेसो रक्खेयव्वो इमस्स जत्तेण । निय- नयरेसु असंववहारप्पमुहेसु तुमए त्ति ॥३९।। एगिदि-विगलपाडयमझं पविसेज्ज पुण जइ कर्हि चि । तह वि चिरावत्थाणं इमस्स तुमए न दायव्वं ॥४०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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