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१९. नरदेव चौपई
२६. उपदेश छत्तीसी २०. राजप्रश्नीय उद्धार
२७. नीतिसवैयाछत्तीसी २१. सागरशेठ चौपई
२८. व्यसनसत्तरी २२. शत्रुजयरास सं. १६८४ २९. जेसलमेर चैत्यपरिपाटी-१९७९ २३. शांतिनाथ वीवाहमंडल-१६७९ ३०. पार्श्वनाथ महादंडकस्तुति २४. सुदर्शन चौपई
(अनुसंधान-१२) २५. हरिश्चंद्र रास
३१. शतदलपद्ययंत्र-लोद्रवपुर शिला
पट्ट पर दामन्नक कुलपुत्रक रासमें प्रूफसंबन्धी अशुद्धियां है या मूल प्रतिकी ही है यह तो कहा नहीं जा सकता, पर जेरोक्स मंगाके देखें । खंजनी परि बरसी रहयउ-खंजनी का अर्थ ढोलिया लिखा, तो खंजकी भाँति
बैठे रहने-अर्थ होगा, खंज का अर्थ क्या होगा? ना - नी -
ने क्रिया है। रीहड़ वसइ नहीं पर रीहड़ वंशइ चाहिए। रीहड़ गच्छका नाम नही, किन्तु रीहड़
ओसवाल जातिमें गोत्र हे, जिसके घर अभीभी जोधपुरमें है।
श्रीजिनचंद्रसूरिजी इस गोत्र के थे। 'सखरउ' का अर्थ साकर-खांड लिखा सो गलत है। सखरा का अर्थ अच्छा
बढिया या उत्तम होगा। दिनरउ - दिनरउ अर्थात् दिन की (रा -- री - रे -- क्रिया) २. अनु-१२ में जो मुनिश्री भुवनचंद्रजी का पत्र प्रकाशित हे, उसके सम्बन्धमें जिनपतिसूरि पंचाशिका जो प्रकाशित हुई हे उसके विषयमें विशेष जानकारी___ बीकानेर के बडे उपाश्रयस्थित ज्ञानभंडारमें जिनभद्रसूरि स्वाध्यायकी पुस्तिका की एक सूची देखी गई, जो अज़ीमगंज (बंगाल) के ज्ञानभंडारमें सं.१४९० की लिखी हुई महत्त्वपूर्ण प्रति थी। हम उसे देखने के लिए सं.१९९२ में अज़ीमगंज
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