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गए तो सूचीपत्रमें देखा नाम नहीं मिला, एक ही दिन ठहरे थे। बाद में वि.सं. २०२१ में कलकत्ता बडे मंदिरजीके १५० वर्ष प्रतिष्ठा का होने से सार्द्धशताब्दी मनायी गई तब अज़ीमगंज से ५ हस्तलिखित व सचित्र ग्रंथ श्रीमोतीचंदजी बोथरा लाये, मैंने वे देखे नहीं थे। अत: वापस भेजने के पूर्व रातमें उनका फोन आया कि यहां प्रदर्शनीमें जो ५ ग्रंथ आए हमें कब वापस भेजना हे, हम तो कुछ समझते नहीं, आपने देखे कि नहीं ? मैं तत्काल रातमें ही जाकर वे ग्रंथ ले आया। अपने मित्र श्रीलक्ष्मीचंदजी शेठको फोन में कहा - जिनभद्रसूरि स्वाध्याय ग्रंथ मिल गया है, तो उन्होंने कहा - सुबहमें आप मेरे पास भेजिए, में उसके फोटो उतार लूंगा । उन्होने फोटो उतारके भेजे। पूरे ग्रंथके सभी फोटो मेरे पास है। मैंने जैनभवनमें खवा दिए पर मेरे उस समयकी नकल की हुई कापीसे उतारके पूज्यश्री सालचन्द्रविजयजी महाराज को भेजे थे वे प्रकाशित किये गए। अभी वे फोटोग्राफ लालवानी गणेशजीके देहान्त के बाद में खोजकर ले आया, उससे मिलाने पर कुछ संशोधन हो सकता है। । मूल प्रति अज़ीमगंज भंडारसे चोरी हो गई। ३. अनुसंधान - १३ मिला।
इसमें कामरूप पंचाशिका पंच अशीति गाथा के अर्थमें हे या जिनभद्रसूरि स्वा. पुस्तिकाके जिनपतिसूरि पंचाशक गाथा के अर्थ से ? तथा यतिशिक्षा पंचाशिका भी ५० गाथा वाली है। क्या कारण ? हैडिंगमें पंचासिया नहीं है।
कामरूप देश तो आसाम है, जहाँ कामाख्या देवीका तीर्थ पहाड पर है। गौहाटी में पास ही है। इसमें विषय योग-स्वरोदय आदि से सम्बन्धित है।
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