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________________ अज्ञातकर्तृक बे दृष्टान्त शतको भूमिका दृष्टान्तशतक नामक ग्रंथनी आ एकमात्र प्रति पूज्य आचार्यवर्य श्रीशीलचन्द्रसूरिजीनी पासेथी उपलब्ध थई छे. अत्र बे दृष्टान्तशतक (२०० श्लोक) प्राप्त थयां छे. प्रतमां संवत्नो निर्देश नथी तथापि प्रतना मध्य भागमां छिद्र तथा अक्षरोना मरोड उपरथी अनुमान करतां जणाय छे के १४मी शताब्दीना उत्तरार्धमां अथवा १५मी शताब्दीना पूर्वार्धमां आ प्रत लखायेल छे. तथैव आ ग्रंथमां कर्तानुं नाम पण मळतुं नथी. किन्तु ग्रंथनो अभ्यास करतां नि:शंकपणे कही शकाय के ग्रंथकर्ता जैनमुनि ज छे. आ ग्रंथमां ५ पत्र छे. ग्रंथ विशेषता - सं. मुनि धर्मकीर्तिविजय १. ग्रंथाकारे ग्रंथारंभे नमस्काररूप मंगलाचरण कर्या विना ज शास्त्रारंभ कर्यो छे. २. ग्रंथ पूर्ण थये छते ५मा पत्रना पूर्वार्धना अन्त्यभागमां तेमज उत्तरार्धमां अन्य विषयोनुं निरूपण छे. Jain Education International ३. प्रतिश्लोकमां मात्र दृष्टान्त ज नथी, परंतु उपमा साथे जीवनोपयोगी व्यवहारप्रचलित तेमज बोधदायक सूत्रोनो पण उपयोग कर्यो छे. ४. ग्रंथमां केवल जैनदर्शननां ज नही, किन्तु जैनेतरदर्शनमां थयेला विशिष्टपुरुषोननां दृष्टान्त पण टांक्यां छे. ५. ग्रंथमां थोडाक श्लोकोमां आदि चरण लखीने पूर्ण करी दीधां छे. ते अन्य सुभाषित ग्रंथो की उपलब्ध थई शके तेम धारणा छे. जेम के १ लक्ष्मी : पीडासहिष्णूनाम् ० २ स्थानं सर्वस्य दातव्यमेक० ३ समाश्रयन्ति सर्वेऽपिo ४ अत्यासक्तस्य मूर्द्धानमधि० ५ सदोषपत्यसंयोगे मोदते० ६ लक्ष्मीभवानि तेजांसि० ७ परे पाण्डुरितं हन्तुम्० For Private & Personal Use Only १-२८ १-५६ १-७९ १-८ १-८१ : १-९५ १-९७ www.jainelibrary.org
SR No.520514
Book TitleAnusandhan 1999 00 SrNo 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1999
Total Pages144
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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