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________________ 91 हशे । सांकळना अंकोडानी जेम एक पछी एक, श्रेणीबद्ध आवतां ढूंकां वाक्यो ए श्री हरिभद्रसूरिनी गद्यशैली छ । विषय, शैली अने भाषानी दृष्टिए श्री हरिभद्रकृत अन्य ग्रन्थो साथे पञ्चसूत्रनुं साम्य ऊडीने आंखे वळगे एवं छे। पञ्चसूत्र जो पूर्वाचार्यनी कृति होय तो श्री हरिभद्रनी मौलिकता पुनर्विचारने पात्र ठरे। बीजी बाजु, तेओश्रीनी आगवी मुद्रा स्वयंसिद्ध छे। आ संजोगोमां पूर्वाचार्यकृत एक ग्रन्थनी छाया हारिभद्रीय विपुल वाङ्मय पर पडी एम मानवा करतां, हारिभद्रीय मुद्रा जेमां स्पष्ट अंकित छे ते कृतिने श्री हरिभद्रनुं ज सर्जन मानवं वधु तर्कसंगत छे - लाघवभर्यु छ। एना समर्थनमां अन्य प्रमाणो जोईए, अने ते श्री शीलचन्द्रसूरिजीए एकत्र करी आप्यां छे। आ परिश्रम एक महत्त्वना प्रश्नना उकेल तरफ दोरी जशे एमां शंका नथी। आ अंकमांनी सामग्रीमांथी पसार थतां जे कंइ नजरे चड्युं / सूझ्युं ते अहीं नों● छु । चारूपमंडन श्री पार्श्वनाथस्तुतिना छेल्ला श्लोकमां (पृ. ५) प्रतिलिपि करती वखते अथवा बीबांगोठवणी वखते अक्षरो पडी गया छ। प्रथम चरण कंइक आ रीते होवू घटे - इत्थं स्तुतं सुयमकैर्यमकैरवेन्दुं . . . . 'हाल्लारदेशचरित्र'ना ४३मां श्लोकमां (पृ.४१) याम' शब्द छे ते हालारी/ काठियावाडी 'जाम', संस्कृतीकरण छे। जामनगरना राजाओ 'जाम' कहेवाता। गणधरहोरा'नी वाचनामां केटलाक शब्दो सुधारवाना थाय छे। श्लोक ४ - 'गहणसन्नं'ने स्थाने शक्य पाठ 'गहाण सन्ना' - "ग्रहोनी संज्ञा" होइ शके। श्लो. ७ – "आरो य पइट्ठिओ" एम वांचq योग्य लागे छ। 'आर' मंगळना ग्रहनुं नाम छे। श्लो. ९मां, एटलेज, "आरो" साचो पाठ छे । 'आरा'नी कल्पना करवानी जरूर नथी। श्लो. १३- "मण देवाणं" - अहीं मणु-देवाणं' होइ शके। श्लो. २०मां 'वलंतं' छे, ते 'जलंतं' होवानी पूरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520512
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages140
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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