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वळी, डॉ. कुलकर्णीनी ए दलील के, 'आ कृति अर्धमागधीमां-गद्यमां छे तेथी ते हरिभद्रप्रणीत मानी शकाय नहि, केम के तेमनी बीजी कृतिओ तो प्राकृतमां छे', ए पण न मानी शकाय तेवी छे. शुं एक ज कर्ता जुदी जुदी भाषाओ अने शैलीओ न प्रयोजी शके ? शुं एक कर्ता पद्यमां तेम ज गद्यमां पण लखी न शके ? वस्तुतः आ बाबत तो एक ज कर्ताना विपुल भाषाज्ञाननी अने व्यापक प्रतिभानी द्योतक बनी रहे तेवी छे.
७. बीजी एक महत्त्वनी बाबत ए छे के 'पञ्चसूत्र' चिरन्तनाचार्य नी रचना होवानुं मनाय छे, अने ए 'चिरन्तन आचार्य' नुं नाम अज्ञात छे एम मानीने ज आपणे आजपर्यंत चाल्या छीए. प्रश्न ए थाय छे के आ चिरन्तनाचार्य आजे आपणा माटे अवश्य चिरन्तन गणाय अने तेथी ते कदाच अज्ञात पण होवानुं स्वीकारी लईए. परंतु आ. हरिभद्रसूरि माटे आ चिरन्तनाचार्य अने तेमनुं नाम अज्ञात होय ए केवी रीते मानी शकाय ? डॉ. कुलकर्णीए अनुमान्युं छे के आ चिरन्तनाचार्य ते हरिभद्रसूरिथी आशरे १०० वर्ष के तेथी थोडा वधु वखत पहेला थया होवा जोइए. ६३ अने आपणे पञ्चसूत्र ने Post-canonical रचना मानीने चालवानुं होय तो डॉ. कुलकर्णीनुं आ अनुमान स्वीकारवुं ज जोइए. हवे विचारीए के पोतानाथी सो बसो वर्ष पूर्वे ज थयेला चिरन्तनाचार्यना नामथी श्रीहरिभद्रसूरिजी अजाण अने अपरिचित होय एवं बनवुं संभवित अने बुद्धिगम्य गणाय खरुं ?
वास्तवमां हरिभद्रसूरिथी, आ कृतिनी जेम ज तेना कर्ता पण जो होय तो - अजाण्या न ज होइ शके. अने जो ते पोते आ सूत्रकारने जाणता होय तो तेमनो नामोल्लेख कर्या विना न ज रहे. छतां तेमणे तेम नथी कर्यु, ते मुद्दो आपणने तेमने ज सूत्रकार तरीके मानवा तरफ दोरी जाय छे.
उपरनी विस्तृत विचारणानुं फलित ए छे के 'पञ्चसुत्त' नी टीकानी जेम ज, तेना मूळ सूचना प्रणेता पण श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराज ज छे; अने ए सिद्ध थवानी साथे ज, आ लेखना आरंभमां आपेला, प्रो. वी. एम. शाह, प्रो. के. वी. अभ्यंकर, प्रो. ए. एन. उपाध्ये तथा डॉ. वी. एम. कुलकर्णी - ए चार विद्वानोए
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