SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 84 प्राकृत अने ३. देश्य प्राकृत प्रस्तुत (हेमचन्द्रीय प्राकृत) व्याकरण पहेला प्रकारने लगतुं छे. '५९ आ विधानने सामे राखीने तपासीए तो पञ्चसूत्र (मूळ) नी भाषा पण हेमचन्द्रीय व्याकरणनी मर्यादाओमां समाह शके तेवी संस्कृतजन्य प्राकृत भाषा होवानुं प्रतीत थाय छे. श्रीहरिभद्रसूरिना 'विशंतिविंशिका' आदि ग्रंथोनी भाषा आव ज छे एवं, ए ग्रंथोमां डगले ने पगले तेमणे प्रयोजेला संस्कृतसम अने संस्कृतभव शब्दो जोतां असंदिग्धपणे समजाय छे. अने आवुं ज आ 'पञ्चसूत्र' नुं पण छे, तेथी पण आ कृति श्रीहरिभद्र - प्रणीत होवानुं मानी शकाय तेम छे. जो के केटलाक विद्वानोए पञ्चसूत्र नी भाषा प्राकृत ( जैन महाराष्ट्री ) नहि, पण आगमोमां प्रयोजाई छे तेवी - अर्धमागधी भाषा होवानुं मानवुं छे. परंतु तेमणे आम मानवा पाछळनां कोई कारणो के प्रमाणो दर्शाव्यां नथी. संभव छे के 'अणाइ जीवे भवे, कम्मसंजोगनिव्वत्तिए, दुक्खख्त्रे, दुक्खफले ६० इत्यादि प्रयोगोमां प्रथमा विभक्तिना एकवचनमां 'ए' कारनो प्रयोग जोइने ए विद्वानो आनी भाषाने अर्धमागधी कहेवा प्रेराया होय. पण एनी सामे, आकृतिमां ज अन्यत्र अनेक स्थळोए, 'रागद्दोसविसपरममंतो, केवलिपण्णत्तो धम्मो, सरणमुवगओ, विवरीओ य संसारो, अणवट्ठियसहावो' ६९ वगेरे प्रयोगोमां प्रथमा - एकवचनमां, प्राकृत भाषामां जे प्रयोजाता 'ओ' कारनो थयेलो उपयोग जो तेमणे ख्यालमां लीधो होत, तो तेमणे आवुं विधान करवानी उतावळ न करी होत. डॉ. कुलकर्णी तो विन्टरनिट्झने टांकीने 'आगमोत्तरकालीन जैन रचनाओ जैन महाराष्ट्री भाषामां छे, हरिभद्रनी अन्य रचनाओनी भाषा पण जैन महाराष्ट्री ज छे, ज्यारे 'पञ्चसूत्र' नी भाषा अर्धमागधी-गद्यात्मक छे, तेथी आ हरिभद्राचार्यनी नहि, पण तेमनाथी पूर्वनी रचायेली कृति छे,' एवं तारण आपे छे. ६२ परंतु हरिभद्राचार्यना अन्य ग्रंथोनी अने पञ्चसूत्रनी भाषामां जणातुं विलक्षण साम्य अने उपर कह्युं तेम संस्कृतसमसंस्कृतभव भाषाप्रयोगोनुं पण साम्य, स्वयं प्रमाणित करे छे के आ कृति अर्धमागधीमां नथी, पण प्राकृतमां ज छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520511
Book TitleAnusandhan 1998 00 SrNo 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1998
Total Pages122
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy