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________________ 78 स्थळे नोंध्यो नथी. तेमनी समक्षनी प्रतिओमां आवा महत्त्वपूर्ण पाठभेदो दर्शावती प्रति नहि होय एम विचारीने समाधान पामवुं रह्यं. * (२) हेमचंद्राचार्यरचित कृष्णगोपीना प्रणयने लगतुं एक मुक्तक प्राकृत भाषाना साहित्यमां जूनी परंपराथी वपराता जे शब्दो तेमना स्वरूपनी के अर्थनी दृष्टिए कोशकारोने मूळे संस्कृतना न लाग्या - 'तद्भव' के 'तत्सम' तरीके तेमनो संतोषकारक खुलासो आपी शकाय तेम न लाग्युं - तेवा शब्दोने तेमणे 'देश्य' के देशी शब्दो का छे । एवा शब्दोना कोश बनाववानी लांबी पूर्वपरंपराने अंते हेमचंद्राचार्यनो 'देशीनाममाला' नामे जाणीतो कोश, आगळनी सामग्रीनो यथायोग्य समावेश करतो अने सुव्यवस्थित होईने, जूना कोशोमांथी तेज एक बच्यो छे । तेनी बीजी विशिष्टता ए छे के अकारादि क्रमे अने शब्दनी लंबाईने आधारे जे शब्दो, तेमना प्राकृत भाषामां आपेला अर्थ साथे, तेमां गाथाबद्ध कर्या छे ते शब्दोने गूंथी लईने हेमचंद्राचार्ये उदाहरणगाथाओ पण रचीने मूकी छे। ए एमनी असामान्य सर्जक कल्पनानां अने साहित्यरचनानी परंपरा परना प्रभुत्वनां निदर्शनो पण छे । आयाससिद्ध होवा छतां अनेक उदाहरणो काव्यत्वना स्पर्श वाळां होवानुं में अन्यत्र बताव्युं छे । अहीं तेवा एक उदाहरण तरफ ध्यान दोवानो हेतु छे । 'देशीनाममाला' ना सातमा वर्गनी त्रीजी गाथामां जे देशी शब्दो आप्या छेते आ प्रमाणे छे : Jain Education International विजयशीलचंद्रसूरि रत्तय 'बंधूक पुष्प'; रग्गय 'कसुंबो, कसुंबी वस्त्र'; रंजण 'घडो'; वअ ' रवैयो'; रंदुअ 'रांढवुं'; रयवली 'बचपण'; रइगेल्ल 'अभिलषित'. आ शब्दो गूंथी लईने हेमचन्द्राचार्ये रचेली उदाहरणगाथा नीचे प्रमाणे छे : रंजण - थणिमरयवलिं ग्गय-वत्थं वहुं खय- हत्थं । रत्तय - उट्ठि रइगेलंतो बज्झिहिसि रंदुएण हरे || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520510
Book TitleAnusandhan 1997 00 SrNo 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages126
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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